इतनी-इतनी मौतों के बाद भी
itni itni mauton ke baad bhi
इतनी-इतनी मौतों के बाद भी,
इतनी बड़ी चुप्पी, ऐसा पहरावा!
ऐसा चाल-चलन!
उड़ते हुए आना, उड़ते हुए चले जाना
कुछ आँकड़ों के मांसल टुकड़े बीन कर चले जाना
मैंने देखा है ऐसों को अक्सर
सब बेख़बर हैं
अपने-अपने धंधों में मशग़ूल
इतनी तबाही के बाद, इतना बड़बोलापन!
इतने जन्मोत्सव, इतने इश्तिहार!
हम सब समकालीन हैं इन सबके, हमराह
जरायम पेशे में या चश्मदीद
ख़ामोशी के गुनहगार
पर और भी हैं जो अभी शाया नहीं सड़कों पर
पूरी तरह हरकत में तो नहीं पर ज़मींदोज़ भी नहीं
अभी कोई नहीं देख रहा है
कोई नहीं सुन रहा है उन्हें
उनका ज़ोर शोर से चुप रहना
धीरे-धीरे चिल्लाना।
- पुस्तक : प्रतिनिधि कविताएँ (पृष्ठ 57)
- रचनाकार : सुदीप बॅनर्जी
- प्रकाशन : मेधा बुक्स
- संस्करण : 2005
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