अगर रहता होगा ईश्वर
तो कितने सुकून से रहता होगा
इस छोटी-सी मड़िया में
जो आबादी से दूर
जंगल में बनी हुई है
शायद किसी एकांतप्रिय व्यक्ति ने
बनवाई होगी यह मड़िया
पता नहीं कौन-सी मनौती पूरी हुई हो उसकी
और किसी नौसिखिए कारीगर ने
बनाया होगा इसे बरसों पहले
कितने आराम से
कट रहे होंगे दिन
न आरती का झंझट
न संध्या-वंदन का इंतज़ार
और न भोग की लालसा
जब मन करता होगा
निकल जाता होगा जंगलों में
खा लेता होगा
गिलहरी के कुतरे हुए बेर
या सुआ—कटेल अमरूद
घूमता रहता होगा
यूँ ही बेसबब जंगलों में
जब थक जाता होगा
तो लौट आता होगा
अपनी मड़िया में
और फिर
नींद में आती होगी पूरी सृष्टि
नदी, वृक्ष, पहाड़, झरने
धरती, समुद्र, आकाश, तारे
फूल, तितली, स्त्री और बच्चे
सपनों में आती होगी पूरी सृष्टि
सूर्य की पहली किरण के साथ
खुल जाती होगी उसकी नींद
(हो सकता है
देर तक सोते हों महाराज
इतवार को
मेरी तरह )
फिर दतौन करता होगा
नीम या बबूल की
और फिर नहाता होगा
किसी पहाड़ी झरने के नीचे खड़े होकर
कितना आनंद है
इस धरती पर
कितना आनंद है
मनुष्य की तरह जीने में
कम से कम एक बार तो
ज़रूर सोचता होगा ईश्वर
कितना सुखद लगता है
इस तरह
ईश्वर के बारे में सोचना।
- रचनाकार : मणि मोहन
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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