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हम शहर के सबसे आवारा लड़के थे

hum shahr ke sabse awara laDke the

कुशाग्र अद्वैत

कुशाग्र अद्वैत

हम शहर के सबसे आवारा लड़के थे

कुशाग्र अद्वैत

और अधिककुशाग्र अद्वैत

    हम शहर के सबसे आवारा लड़के थे

    लोग हमें देखते और औरों को नसीहत करते―

    इनकी तरह मत होना,

    हम में होने जैसा था ही क्या

    सो, हम भी ख़ुद की तरफ़ देखने वालों को

    यही हिदायत देते―

    हमारी तरह मत होना

    और, वैसे भी

    हमारी तरफ़ देखता ही कौन था

    गली के आख़िरी मकान के

    दूसरे माले की बालकनी पर

    गिटार बजाने वाली

    इक उदास लड़की के सिवा।

    हम शहर के सबसे आवारा लड़के थे

    परंतु, हमें शहर ने

    बड़ी ही सहजता से अपनाया

    ऐसे जैसे कोई घर आए,

    भूख लगे,

    फ़्रिज खोले,

    सब्ज़ियाँ काटे,

    पकाए,

    खाए,

    टी.वी. में खो जाए;

    ऐसे जैसे किसी को नींद आए,

    बत्तियाँ बुझाए,

    कंबल खोले,

    लेटे और सो जाए।

    हम शहर के सबसे आवारा लड़के थे।

    हमने तब शराब पी

    जब हमारे पास

    पीने को बहुत कुछ था

    जीने को कुछ नहीं।

    हम उन सफ़हों की तरह थे

    जो किताबों में तो थे

    निसाबों में नहीं।

    हम शहर के सबसे आवारा लड़के थे।

    हम धूप और छाया के मध्य कहीं थे,

    राजा और रिआया के मध्य कहीं थे।

    शहर के सब इंतज़ाम बदलते रहते थे,

    शहर के निज़ाम बदलते रहते थे,

    और हम...

    हम सबको बराबर खटकते रहते थे।

    हम अलज़ेब्रा के 'एक्स' के उस मान की तरह थे

    जिसे निकालने के सौ तरीक़े होते हैं

    कोई भी निकाल देता था हमें।

    सबकी चाहना थी, हम वैधानिक लोच बनें,

    लेकिन, हम सरकार के पैरों की मोच बने,

    हमसे कहा गया, हमारी जान को ख़तरा है।

    अगले कुछ दिनों तक

    हम अपने ही शरीर की ख़रोंच बने।

    हम शब्द बने,

    ऋतु बने,

    रुचियाँ बने,

    हम हर वो शय बने

    जो हमें उपलब्ध थी।

    हम क्रांतियों में

    लिया गया वक़्त बने,

    बहा रक्त बने,

    फाँसियों के तख़्त बने।

    हम वो अधर बने

    जो अचूमे रहे,

    हम वो नयन बने

    जो अझूमे रहे।

    ऐसा नहीं है कि

    हम कुछ और नहीं कर सकते थे

    कुछ और यानी―

    किसी दो कौड़ी की परीक्षा में

    सकते थे अव्वल,

    या फिर, मान सकते थे अपने अब्बा की बात,

    ख़ुश कर सकते थे सारी क़ायनात को एक साथ

    भर सकते थे कोई दो कौड़ी का फ़ॉर्म,

    बदल सकते थे अपनी तक़दीर

    परंतु, हमने प्रेम करना चुना

    एक ऐसी लड़की से

    जिसे पता भी नहीं था

    प्रेम कैसे किया जाता है।

    ऐसा नहीं है कि हम कुछ और नहीं हो सकते थे

    लेकिन हमने सहर्ष बर्बाद होना चुना

    हमने चुनाव का हमेशा सम्मान किया

    इसलिए हमें इस बात का ज़रा भी मलाल नहीं है

    कि हम अचुने रह गए।

    हम शहर के सबसे आवारा लड़के रहे

    और हमने इस तमग़े का कभी दिखावा नहीं किया।

    हम देर-सबेर घर आते रहे,

    चीख़ते-चिल्लाते रहे,

    हमने तब आवाज़ की

    जब चुप रहना

    हर तरह से

    फ़ायदे का सौदा बताया गया था।

    हम मुर्दों के बीच रहकर भी मरे नहीं,

    हमने शहर को मरघट बताया

    और मरघट पर शहर बसाने का ख़्वाब सजाया।

    हमें जब भूख लगी

    हमने शहर खाया,

    हमें जब प्यास लगी

    हमने शहर पीया,

    और जब हम अपच के शिकार हुए

    तब हमने थोड़ा-सा शहर उगल दिया।

    जब बढ़ने लगा कोलाहल

    शहर ने हम में पनाह ली

    हमने अपने भीतर,

    बहुत भीतर

    एक मरते हुए शहर को

    ज़िंदा रक्खा।

    हम शहर के सबसे आवारा लड़के थे।

    स्रोत :
    • रचनाकार : कुशाग्र अद्वैत
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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