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हम पत्थर हो रहे हैं

hum patthar ho rahe hain

हरे प्रकाश उपाध्याय

हरे प्रकाश उपाध्याय

हम पत्थर हो रहे हैं

हरे प्रकाश उपाध्याय

और अधिकहरे प्रकाश उपाध्याय

    कितने लाख लोग दुनिया के भीख माँग रहे हैं

    कितने अपाहिज हो गए हैं मेरी तरह

    कितने प्रेमियों के साथ दग़ा हो गया है

    बस यही बचा है सुनने-बताने को

    मेरी तरह कितने ही लोग

    इन ख़बरों में हाय-हाय कर रहे हैं

    हाय-हाय की दहला देने वाली चीख़ें

    घुटी-घुटी हैं

    जाने कौन इनका गला घोंट रहा है

    मैं सोचता हूँ

    निकलूँ और दौड़ू सड़कों पर

    अपने तमाम ख़तरों के बावजूद

    चिल्लाऊँ शोर मचाऊँ

    कि पड़े सोए लोगों की नींद में ख़लल

    पृथ्वी की छाती में

    कील ठोका जा रहा है

    और अजीब-सी बात है कि मेरे साथी सब सो रहे हैं

    बस चिल्लाने का काम ही मेरे वश में है

    जो मैं नहीं कर रहा हूँ

    नहीं तो करने को बचा ही क्या है

    भरोसाहीन इस दौर में

    निराशा की यह घनी शाम

    दुख की बूँदा-बाँदी

    तुम्हारी यादें

    ग़लीज़ ज़िंदगी की ऊब

    और एक सख़्तजान बुढ़िया की क़ैद

    जो उल्लास के हल्के पत्तों के संगीत से भी

    चौंक जाती है और चीख़ने लगती है

    इन सबसे बिंधा

    कितना असहाय हो रहा हूँ मैं

    कहीं कोई भरोसा नहीं

    पता नहीं किस भय से काँप रहा हूँ मैं

    सारी चिट्ठियाँ अनुत्तरित चली जाती हैं

    कहीं से कोई लौटकर नहीं आता

    दोस्त मतलबी हो गए हैं

    देखो मैं ही अपनी कुंठाओं में

    कितना उलझ गया हूँ

    संवेदना के सब दरवाज़ों को

    उपेक्षा की घुन खाए जा रही है

    बेकार के हाथ इतने नाराज़ हैं

    कि पीठ की उदासी हाँक नहीं सकते

    हम लगातार अपरिचित होते जा रहे हैं

    हमारे पाँव उन गलियों का रास्ता भूल रहे हैं

    जिनमें चलकर वे बढ़े हैं

    देखो तुम ही इस गली से गईं

    तो कहाँ लौटी फिर!

    घास के उन घोंसलों की उदासी तुम भूल गईं

    जिन्हें हम अपने उदास दिनों में देखने जाते थे

    और लौटते हुए तय करते थे

    परिंदों की गरमाहट लौटाएँगे

    किसी-न-किसी दिन इन घोंसलों को

    देखो हम किस क़दर भूले सब कुछ

    कि ख़ुद को ही भूल गए

    हमें प्यास लगी है

    और हमें कुएँ की याद नहीं

    हम एक पत्थर की ओर बढ़ रहे हैं

    पूरी बेचैनी के साथ...।

    स्रोत :
    • रचनाकार : हरे प्रकाश उपाध्याय
    • प्रकाशन : हिंदी समय

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