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होशियारपुर

hoshiyarpur

विनोद भारद्वाज

विनोद भारद्वाज

होशियारपुर

विनोद भारद्वाज

और अधिकविनोद भारद्वाज

    मगध

    पेरिस

    बनारस

    यह होशियारपुर है।

    यहाँ लोग अब कम आते-जाते हैं।

    यह वही होशियारपुर है

    जहाँ से हम कभी अपने गाँव की

    बस पकड़ा करते थे।

    देश के संस्कृति-संपन्न नक़्शे में आपको

    यह कहीं नहीं दिखेगा।

    ऐसा भी नहीं है कि हत्यारे

    सिर्फ़ होशियारपुर में आकर

    बस गए हैं।

    हत्यारे यहाँ पहले भी थे

    हर जगह थे

    हर गाँव में थे

    अजीब-अजीब हादसे होते थे

    होशियारपुर के गाँवों में।

    बारात लौटती थी

    मरे हुए दूल्हे को लेकर

    दुल्हन का रंग देखकर

    अफ़ीम खा ली थी उसने।

    बहुत कुछ होता था

    होशियारपुर में

    पर तब रेल के डिब्बों से

    जब हम उतरते थे

    तो प्लेटफ़ॉर्म वीरान नहीं होते थे

    संगीनधारी सिपाही

    वहाँ नहीं नज़र आते थे।

    हम खाते थे जलेबी

    बैठकर दूध पीते थे

    होशियारपुर के बस स्टैंड पर।

    फिर ख़ुश होते थे

    कि जाएँगे अपने गाँव बहलपुर।

    नाना खड़े होंगे

    शिखर धूप में

    हमारी राह देखते।

    यह होशियारपुर है

    हस्तिनापुर नहीं

    यहाँ क़िले नहीं हैं

    युद्ध के मैदान

    पर हत्याएँ होती हैं यहाँ।

    सूने प्लेटफ़ॉर्म पर

    हाथ में कसोरे लिए

    पूछ लेता है लड़का कभी-कभी

    चाय चलेगी साहब?

    ऐसा लगता है कि वह फुसफुसा रहा है

    यह होशियारपुर है

    अब आपको यहाँ

    होशियार होकर उतरना होगा।

    स्रोत :
    • रचनाकार : विनोद भारद्वाज
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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