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आज फिर आत्माराम बहुत उदास है

aaj phir atmaram bahut udas hai

अनुवाद : चमनलाल

सुरजीत पातर

सुरजीत पातर

आज फिर आत्माराम बहुत उदास है

सुरजीत पातर

और अधिकसुरजीत पातर

    आज फिर आत्माराम बहुत उदास है

    वैसे तो वह ख़ुद को ए.आर. कपूर ही कहता है

    ढका-सा दूर-दूर ही रहता है

    अँग्रेज़ी बोलता

    ऊँचा-सा बैठता है

    लेकिन ऐसे उदास पलों में वह आत्माराम बनकर

    मन के अँधेरे में पीछे लौट जाता है

    चढ़ी सीढ़ियाँ उतरता है, पंजाबी में बुदबुदाता

    नीचे ही नीचे फिसलता है

    और ख़ुद को गाँव के एक कच्चे-से घर में 'पाता' है

    जहाँ दीये की लौ में

    उसकी मृत माँ उल्टा चरखा कातती है

    निपट चुकी को छेड़ती है

    बुने हुए को उधेड़ती है

    बूढ़ी आँखों से उसे पहचानकर कहती है :

    गए आत्माराम

    कहती है और बहुत कुछ कहती रहती है

    पता नहीं क्या-क्या दुखड़े रोती है

    कभी कौशल्या कभी इच्छराँ बन जाती है

    उसकी बातों का गीला ईंधन सुलगता है

    जिसमें ए.आर. कपूर का दम-सा घुटता है

    लेकिन आत्माराम को एक सुकून-सा मिलता है

    कि आज उसे माँ मिल गई

    जो उसे देखने को तरसती हुई चली गई

    जब वह शहर रहता था और गाँव आने से जैसे डरता था

    ख़ुद को ए.आर. कपूर कहता था

    अँग्रेज़ी बोलता

    ढका-सा दूर-दूर रहता था

    वह भी क्या करता

    मोहिनी मुखमणि यही कुछ चाहती थी

    माँ की करुणा उसे क़ब्र की तरह डराती थी...

    माँ की ममता

    घर की चौखट

    मढ़ियाँ मंदिर

    सब कुछ अतीत के जल में बह गया

    और वह बेफ़िक्र एक ऊँची-सी जगह पर बैठ गया

    लेकिन कभी-कभी उसके सीने में तीव्र शूल उठती है

    और वह शहर की ऊँची इमारत से इस तरह लुढ़कता है

    कि सौ कोस दूर अपने गाँव के बिक चुके घर के आँगन में

    काटे जा चुके वृक्ष की छाया में गिरता है

    जहाँ उसकी मृत माँ उल्टा चरखा कातती है

    निपट चुकी को छेड़ती है

    बुने हुए दुख उधेड़ती है...

    आत्माराम बार-बार यहीं क्यों आता है

    शायद इसलिए

    कि यहीं से वह एक ऐसा मोड़ मुड़ा था

    कि फिर ख़ुद से नहीं मिला था।

    स्रोत :
    • पुस्तक : कभी नहीं सोचा था (पृष्ठ 35)
    • रचनाकार : सुरजीत पातर
    • प्रकाशन : सारांश प्रकाशन
    • संस्करण : 1998

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