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छुट्टियों में पेड़ों को भूल जाना

chhuttiyon mein peDon ko bhool jana

मोनिका कुमार

मोनिका कुमार

छुट्टियों में पेड़ों को भूल जाना

मोनिका कुमार

और अधिकमोनिका कुमार

    इमारत के प्रथम तल पर बने

    अपने दफ़्तर में पहुँचते ही,

    मैं ऊँचे पेड़ों का स्पर्श करती हूँ।

    इन्हें स्पर्श करते ही मन में विचार आता है

    मुझे दिमाग़ को ठंडा रखना चाहिए,

    आख़िर हम दुनिया में

    लोगों की बातों का अच्छा बुरा मानने नहीं आए हैं।

    फिर भी माहवार ऐसे दिन आते हैं

    जब घर की चाबी से दफ़्तर का ताला खोलने की कोशिश करती हूँ

    निर्भर करता है उन दिनों मैं कितना मिली-जुली,

    कैसे घुली-मिली दुनिया से।

    तीन दिन के अवकाश के बाद

    मैं सुबह दफ़्तर आई

    तो पेड़ों को देखकर ख़याल आया,

    इन छुट्टियों में,

    मुझे एक बार भी इन पेड़ों की याद नहीं आई।

    कदंब के फूल जिन्हें देखकर लगता है,

    इतना सुंदर भी हुआ करे कोई,

    वही सुंदर फूल मुझे बिल्कुल भूल गए थे।

    ये पेड़ लंबी छुट्टियों में मुझे याद नहीं आते

    फिर भी यहाँ लौटकर तसल्ली करती हूँ कि वे हैं,

    बदलते मौसम के साथ गहरे प्रेम में

    हवा के झोंके पर झूलने को आतुर

    इतने कातर इतने भावुक,

    जितने स्थिर उतने आकुल।

    मेरे पेड़ों ने कहा मुझसे,

    अच्छा है

    छुट्टियों में पेड़ों को भूल जाना।

    उन्हें याद करना,

    और लौटकर

    झूठा लगने की हद तक प्रेम करना।

    बार-बार इन्हें छूना

    और कहना,

    कैसे रही मैं इतने दिन दूर तुमसे।

    दुनिया में बहुत काम करने आए हैं हम

    जैसे दुनिया में खो जाना

    लोगों की बातों का अच्छा-बुरा मानना

    नष्ट करना अपने एकांत को

    बाद में पछतावे के लिए।

    और विनय करना पेड़ों से,

    इसकी बहाली के लिए।

    स्रोत :
    • पुस्तक : आश्चर्यवत् (पृष्ठ 32)
    • रचनाकार : मोनिका कुमार
    • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
    • संस्करण : 2018

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