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ट्रॉय के पहले घोड़े

traay ke pahle ghoDe

मेलीह सेवदेत एन्दे

मेलीह सेवदेत एन्दे

ट्रॉय के पहले घोड़े

मेलीह सेवदेत एन्दे

और अधिकमेलीह सेवदेत एन्दे

    1. पहली दौड़

    कथा कही है एक अंधे कवि ने—

    आत्माएँ थीं ट्रॉय के पहले घोड़ों के भी।

    सुनी जा सकती थीं जिनकी हिनहिनाहटें नीचे हेडीस में।

    बिना घोड़ों के हिनहिनाहट

    कँपाती थी मृतकों को और

    भर देती थी ग़ुस्से से कुत्तों को

    कभी टापें बजाती ट्रोजन आकाश को :

    ग़ैर-दफ़्न घोड़े की बेचैन आत्मा।

    अगर एसियेन लोगों ने उस दिन दौड़ किसी और के लिए की होती

    एशिलीज अपने घर ले जा सकता था पहला पुरस्कार

    क्योंकि उसके पास थे अनश्वर घोड़े

    जो उपहार में दिए थे पोसीदान ने उसके पिता पेलियस को

    और जो फिर उसने दे दिए अपने बेटे को।

    अब घोड़े दुख मनाते हैं पेट्रोक्लीस के लिए

    हिम्मत टूटी हुई, अयालें बुहारतीं धरती को।

    डियोमीडीस ट्रास से लाया घोड़े अपने रथ के लिए,

    एनियस की लूट

    जिसे बचाया था एक देवता ने।

    तब सफ़ेद बालों वाले मेनेलास, एट्रियस के बेटे ने

    देवनायक की तरह उठकर जोत दिया था दो घोड़ों को अपने रथ में।

    एग्मेम्नान की घोड़ी ऐथी और पोडारगस उसका अपना घोड़ा।

    एंटीलोकस अपने घोड़े लाया पाइलास से।

    फिर लोकनायक रुशेन अली ने सवारी की अपने

    भूरे घोड़े की, दाहिने बाएँ किए अपने पंखों के साथ।

    कोई मतलब नहीं था दूरी का उसके लिए।

    फिर वे लाए घमंडी काठ के घोड़े को।

    सुलगता देवदारु फैल गया सारी हवा में,

    उसकी जादुई गंध से विचलित हुए घोड़े दूसरे।

    फिर आई दुलदुल

    उपहार मोहम्मद का अपने दामाद को,

    दुलदुल, जो थी शांतचित्त घोड़ी,

    उसके ढँके हुए गुप्तांग,

    बहुदेववादी घोड़ों के बीच चली धीरे से।

    आया बाद में अलेक्ज़ेंडर का बूसीफ़ेलैस

    झुका हुआ उसका सिर, गहरी दृष्टि फेंकता हुआ हिंदू युवतियों की तरह

    देखता था थोड़ी-थोड़ी देर में वह दक्षिण की ओर

    मानो उसे पता हो कितने निकट बहती थी ग्रेनिकास।

    फिर आई एक सिड की बाबिएका, और तुरत बाद

    रोशिनेट रोता हुआ।

    मुझसे मत करो घोड़ों की बात!

    मुझे मालूम है कि वे आते हैं एक माँ के गर्भ से रात में,

    अँधेरी घुड़साल में। कोई लैंप लिए रहता है

    जिसकी रोशनी टिमटिमाती है पुआल पर। खाँसती और

    हाँफती है घोड़ी, देखती है अपना सिर फेरकर : 'क्या वह है मेरी तरह?

    क्या सफ़ेद है उसके टख़ने के ऊपर के बालों का गुच्छा?'

    मुझसे मत करो घोड़ों की बात!

    धरती से विच्छिन्न सुबह खेतों की तरह

    उसके चीख़ते प्रपातों की तरह, आकाश की दरार के पार

    छलाँग लगाता है पीगेसस। मेरी जवानी, मेरे बेटे,

    वह समय था पागलपन का और दु:ख का, दिवंगतों के प्रतिकार का,

    शरीरहीन पक्षी, ध्वस्त नक्षत्र, विस्मृत गुलाब का घाव,

    मृत्यु के स्मारक की तरह ऊपर उठती हुई, निर्वीज नन्हीं झीलें

    और नंगा शून्य, सहमा हुआ अवकाश, वह असमाप्त दौड़...

    घोड़े, घोड़े। मैंने किसी को बूढ़ा होते नहीं देखा।

    कुछ कोशिश करते हैं अपनी अयालों से क़िले गिराने की,

    कुछ अभी भी कुरेदते हैं धरती।

    मुझसे मत करो घोड़ों की बात,

    मैं सह नहीं सकता विचार उन्हें पीटे या गिराए जाने का

    परास्त, भूलुंठित, मुझसे मत कहो,

    मत कहो, मैंने नहीं देखा ट्रोजन युद्ध।

    2. विष

    क्या तुमने सुना

    जो सुना है बुरसा के गैरेज मैकेनिक महमेत ने?

    पूर्वाभास से उसके

    कोलतार, मछली और इमारती लकड़ी से

    अतृप्त घास की तरह स्त्री से गंधाता हुआ शहर

    राख हो जाएगा जलकर

    लाओकून को काटा ज़हरीले साँप ने।

    वहाँ खड़े थे स्त्रियाँ और बच्चे ऐंठते हुए

    हवादार ईलियन के किनारे।

    मृत्यु के अवशेष, जीवन और प्रेम की खुरचन,

    तट पर अंबार,

    विचार में खोया और पाया शब्द,

    असीम, एक खोजी जा रही खंडित मूर्ति की तरह।

    प्रसिद्धि, महानता और किनारों पर ढेर शत्रुओं का।

    क्योंकि समुद्र अभी नहीं पहुँचा है अपनी पूर्णता तक उनींदा है वह

    और अपूर्ण। अपनी छिद्रित नाल में शांत

    अपने प्राचीन मृतकों की तलछट के साथ।

    'इज़मीर मेले से बस पर वापस आते हुए

    मैंने बादल से घिरते देखा ट्रॉय को'।

    उन्होंने सारी पुस्तकें फेंक दीं गैस चैंबर में

    ड्रेसडेन, कोलोन, म्यूनिख में।

    ठहरे रहो सारे शिखरों पर...

    'वे कहते हैं टकरा रहे हैं वायुयान और पक्षी आकाश में

    शहर पर बरस रहे हैं। पंख और चोंचें'

    क्या तुमने सुना है?

    विदेशी हैं हमारे वेश्यालयों की सभी लड़कियाँ।

    उनके नाम हैं ला, ली, लू...

    'ठीक है।

    पहाड़ पर छोड़े गए बच्चे का क्या हुआ?

    इसी के बारे में बात कर रहा है हर कोई अब।

    क्या उसे खा गए पशु-पक्षी?

    क्या तुम उसके अवशेष भी नहीं पा सकते?

    क्या हम उन्हें एकत्र कर नहीं सकते और बना नहीं सकते उनसे एक व्यक्ति?

    पर अगर, अगर वह छोड़ दिया गया हो तनहीन?

    कर सकते, नहीं कर सकते, अगर?'

    3. स्वप्न

    'भोर के पहले

    उस प्रहर जो एक हमेशा भूखे कबूतर की तरह,

    तुरंत बीन लेता है रात की जूठन

    जब अजन्मे बच्चे कमान कसते हैं, स्वप्नों की

    स्त्री ने देखा बच्चे और आग का स्वप्न।'

    'तो वे बच्चे को छोड़ आए पहाड़ पर, जहाँ तिरते थे अब भी

    स्वप्न और आग, काश वे पीछे छोड़ सके होते सिर्फ़ स्वप्न को।'

    'हाँ, स्वप्न ने हमें भयभीत किया, ऐसा तो होना ही था,

    हमारे वश में नहीं था कि हम व्याख्या करते स्वप्न की

    और वह करते जो हमें करना था।

    बच्चे के बढ़ने की प्रतीक्षा करेगी आग।

    प्रतीक्षा करने दो भविष्यत् दिनों के अपंग शिलालेख को भी,

    और पक्षी की चोंचों से लहूलुहान दर्पण को भी,

    हमेशा परिपक्व होती है मदिरा और पी जाती है घूँट-घूँट,

    क्योंकि रक्त की गठिया होती है लाल,

    दिन का रंग ज्वार-भाटे में, सतत गान।

    क्या हमने बाँट नहीं दिया है दिन को सात और रात को पाँच में

    क्या हमने बाँध नहीं दिया है इस निद्राविहीन प्रतिरोध के जल को?

    क्या हमने जन्म से बहुत दूर फेंक नहीं दिया है चंद्रमा को?

    कर नहीं दिया है नींद की भारी चिमनी को लंबा

    करने दो प्रतीक्षा नरकुल को रहस्यजल में

    और नेत्रपक्षी को जो झाँकता है, चंद्रमा के लहँगे से

    इससे पहले कि बन सके नगर, पत्थर को घिस रहा है भोंथरा चाक़ू

    उन्हें प्रतीक्षा करने दो, प्रतीक्षा लिखी है जिनके भाग्य में उन

    ललाटों को करने दो प्रतीक्षा

    मैं कहता हूँ थामे रहो प्रवाह को, वह थमता है और करता है प्रतीक्षा

    जल, धरती, मानस की उजड्ड खर-पतवार,

    चक्रदोला, घूँघट, मंदिर और सीढ़ियाँ बची रहेंगी,

    बचे रहेंगे अनश्वर सुख और ऊब,

    हम प्रतीक्षा करते हैं वह जीते हुए जो दिया गया है हमें।'

    'ज्ञानी को बहुत कष्ट हुआ।

    क्या तुम समझते हो कि हम साथ-साथ झेल सकते हैं यह उत्सुकता

    जो चलेगी अनजाने वर्षों तक?

    हमें कुछ पता नहीं कि क्या लाएगा हमारा कल।

    हम अब भी नहीं जानते, पर यह बच्चा एक आशा है,

    आशा हमारी आशाहीनता की।

    जाओ और उसे खोजो जंगल में।'

    4. मोड़

    जंगल एक जादुई जाल है जिसे बिछाया है नग्न मूल निवासियों ने

    और पहाड़, एक चकित और पछियाए जाते घोड़े की तरह, कोशिश

    करता जीवन से चिपकने की

    चढ़ता है आकाश के खोखले जल की ओर, चढ़ता और चढ़ता ही जाता है।

    नीचे

    सात बार उजाड़े गए समुद्र और दीवारों के बीच

    स्वप्न और आग के दो पंखों के बीच

    दिन के सामने के दाँत और परछाइयों की चट्टान के बीच

    नदी के चलने वाले नृत्य के बीच, समय को तानते हुए,

    कुछ नहीं की गोली बेतों से

    बुलवाती है झटपट मृत्यु की बोली

    और झील, अंत के पड़ोस की दीवार,

    घोड़े मुड़ते रहते हैं...मैंने एक नहीं देखा जो बूढ़ा हो रहा हो।

    कुछ कोशिश करते हैं अपनी अयाल से शिखरों को गिराने की,

    कुछ अपनी टापों से खूँदते हैं धरती।

    एक तरफ़ प्रतीक्षा करता रहा पुरस्कार : एक स्त्री

    हत्थे के साथ एक तिपाही, एक छः साल की घोड़ी,

    आग से अछूता एक महाकुंड, एक दुहत्थी केतली,

    चिल्लाहट, टापों की आवाज़ें, धूल के बादल...

    ठहरे रहो सारे शिखरों पर।

    'ठीक है, तब,

    पहाड़ पर छोड़े गए बच्चे का क्या हुआ?'

    5. भविष्यवाणी

    'वह नीला मनका देखा? अभी उस दिन

    उसे लिए था एक ऊँट चलाने वाला। वह विचित्र था सचमुच।

    वह जानना चाहता था भाग्य अपना पर लड़ा निर्भय होकर

    विरुद्ध उसके। मुझे समझ नहीं आता। वे कहते हैं

    युफ़ेटीज़ को पार करते डूब गया वह। भाग्य

    एक भूखा कुत्ता है—तुम उसे भगा देते हो और वह लौट आता है

    तुम्हें खोजकर। मैं भाग्य बताने उँडेलता हूँ सीसा,

    पर यह किसका है भाग्य?

    मैंने मैकबेथ से कहा था कि वह राजा होगा : नहीं हुआ।

    पर मैंने उससे कभी नहीं कहा कि वह राजा को मारेगा।

    यह मेरे सामर्थ्य में नहीं कि मैं समय को लंबा या

    छोटा कर दूँ। 'यत् सत् तत् क्षणिकम्'।

    देखो, मैंने आँख झपकाई : सब चीज़ें पीछे छूट गईं और चली गईं।

    आने वाला कल बीता कल है और बीते कल को अभी आना है।

    यह बीज वह बच्चा हो जो तुम थामे हो : उसे धकेलता हूँ मैं।

    वह पहाड़ से नीचे लुढ़कता है। उसे कितनी देर लगी?

    नहीं बता सकता मैं। अभी भी नहीं बता सकता मैं कि यह वही है या नहीं है।

    जलाओ एक दीया। उससे प्रकाश मिलता है शाम को।

    आधी रात को दूसरा, भोर के पहले फिर एक,

    फिर भी वह वही दिया है।

    सनातन : क्षण-धर्म:। करो विश्वास। मत करो विश्वास।'

    6. प्रेम

    जंगल शुरू हुआ जब तुमने मेरा हाथ थामा,

    बँटता हुआ दो भागों में अंजीर की तरह।

    हम दौड़ेंगे, दुहरे झुके हुए, बेदम,

    मछलियों-से पछाड़ खाते, बाधा डालतीं

    हमारे वेग में चीड़ सूचिकाएँ

    छोड़ो मत मेरा हाथ। मेरा

    हाथ मत छोड़ो।...

    फिर हम नीचे जाएँगे, फिसलते हुए

    वृक्ष की तरह झुकी हुई शांति,

    जड़ें उगाती हम दोनों में खोजती हुई

    धरती के सोतों को, एक के बाद दूसरा।

    तुम्हारे सूर्यमुखी स्तन प्रकाश की ओर अपना मुख घुमाते हैं।

    दुपहर के घंटों की तरह, मैं तुम्हारे स्तनों पर सब ओर चला।

    विजय के तोरण की तरह चला मैं तुम्हारे दोनों ओर।

    हमने दौड़ना शुरू किया फिर,

    ऊपर, और ऊपर, आकाश के खोखले जल की ओर।

    मैं तुम्हें चूमूँगा और तुम सिहरोगी। प्रेम

    छिन्न-भिन्न क्षणों को जोड़ता है नहीं देखता कोई स्वप्न।

    जंगल, पछियाए जा रहे घोड़े का भाग्य, नई शुरुआतों का भूखा कबूतर।

    जो बताया जा सके ऐसा कोई भाग्य नहीं है हमारा

    उसे हमने जला दिया प्रवासी पक्षी की आँखों में धब्बे की तरह

    या भोर में उनकी चोंचों के बीच पकड़े गए अकेले।

    अन्न की तरह!

    जो बताया जा सके ऐसा कोई भाग्य नहीं हमारा

    स्रोत :
    • पुस्तक : पुनर्वसु (पृष्ठ 435)
    • संपादक : अशोक वाजपेयी
    • रचनाकार : मेलीह सेवदेत एन्दे
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली
    • संस्करण : 1989
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

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    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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