एक
एक स्टापेज जाने भर के लिए खोजते हो
ट्राम की ऐसी सीट जिसके चारों ओर लटके हों
गार्डेन के सबसे सुवासित फूल
सीट न भी मिले तो घिरा रहूँ
अजनबी जंगली बेतरतीब शाखों से।
घंटे भर के लिए बिगड़े, सुस्ता रहे ट्रक के नीचे
कुत्ते इतने खर्राटे लेकर सोते हैं
मानो हज़ार साल बाद नसीब हुई इतनी अच्छी नींद।
राजमार्गों पर डायवर्जन होते ही
कीड़े-मकौड़े भी बदल लेते हैं रस्ते।
बेटा यही इकोलॉजी है !
बुरे से बुरे संपादकों के मेलबॉक्स में होती हैं
सौ अच्छे लेखकों की रचनाएँ
और अच्छे से अच्छे संपादकों के ऐशट्रे में भी होते हैं
सौ लेखकों के फेफड़े।
दो
हे संपादक,
तुम कई क़लम से एक साथ लिखो
सभी स्थायी भाव पर एक साथ कार्य करते हुए
सभी पेशेवरों की लिप्सा में घुसते हुए
एक ही साथ हासिल करो
अमृत और विष का विज्ञापन
'मारने की इच्छा' तो अतिप्राचीन विद्याओं में शामिल
बस बंदूक़ थामने वाले कंधे हासिल करना
'ध्वस्त करना' भी प्रतिष्ठित कामनाओं में
बस ढंग का बारूद और कुछ पेशेवर तोपची
'कीचड़ उछालना' भी कम शास्त्रीय थोड़े ही?
बस काली खादर मिट्टी और कुछ शहरी कचरे
कुछ मद्य-द्युत के अर्द्ध-पारदर्शी पेशे
जितना ही इंटरटेनिंग उतना ही क़ानूनी
दवाओं-दुआओं का इतना हो असर
कि तेरी क़ाबिलियत-सलाहियत ही कही जाए समकालीनता
तेरे जैसों का भूत ही
हमारा इतिहास मान लिया जाए !
तीन
देखो भैया लोर्का-काफ़्का का बस नाम सुना हूँ
शुक्ल-द्विवेदी की बस फ़ोटो देख पाया हूँ
निराला-प्रसाद की एकाध किताब होनी चाहिए रैक पर
रामविलास शर्मा मर चुके थे
मेरे दिल्ली आने से पहले
बस नामवर से मिला हूँ खड़े-खड़े
उन्हीं नामवर के जिले में जब मिली नौकरी
तो पता चला कि वो वाले नामवर तो दिल्ली में रहते हैं
काँवर गाँव में मिले नामवर तिवारी
जिनका नाम वोटर लिस्ट से ग़ायब है
सकलडीहा के नामवर यादव
जिनकी रोड पर वाली ज़मीन पर क़ब्ज़ा है
और थाना दिवस तहसील दिवस जनता दर्शन के वे रेगुलर आइटम हैं
चहनिया के हेडमास्टर नामवर सिंह को पता नहीं था
‘कविता के नए प्रतिमान’ के लेखक के बारे में
वैसे जीयनपुर गाँव को जानते थे
आवाजापुर से रस्ता कटता है
माहटर साब ने सौंधे दूध की भरुकबा वाली चाय पिलाते हुए आँख मारी नमस्ते किया
चुनाव में रिजर्व ड्यूटी थी
तहसील में नहीं घर पर रुकना चाहते थे
अकेली पत्नी डरती है
तो संपादक जी घुसे हमारे वायुमंडल में?
हमारे सेमिनार इन्हीं लोगों के साथ
और कविता भी इन्हीं लोगों के लिए
यदि हम निकाल सके सुखाड़ी को
अघोर सिंह के दाँतों के बीच से
तो समझो ज्ञानपीठ मिल गया अपन को
हरेक हफ़्ते मिल ही जाते सुखाड़ी एक दो
अपने दिल के कोने-कोने में टँगे हैं
एक से एक चमकदार मेडल
और जिस्म के ऊपर शालों और प्रशस्तियों का गाटावार गट्ठर।
चार
एक संपादक के यहाँ अगले तीन साल तक की कविता जमा थी
उसकी सख़्त चेतावनी बेअसर थी कि कोई तीन साल तक कविता न भेजे
एक संपादक को कविता की ख़त्म होती भूमिका पर कोई संदेह न था
उसकी मौत तक संपादकीय इसी विश्वास पर चलता रहा
एक संपादक की चेतावनी थी कि कृपया छह महीने तक पूछताछ न करें
दूसरे उदारमना ने चेतावनी की उम्र तीन माह कर दी
तीसरा चिंतित था कि देश की कविताएँ कहीं उसकी हार्ड डिस्क न जाम कर दें
सबसे लंबे वाले केवल हिमालय को छापना चाहते थे
चुप्पे को केवल प्रशांत महासागर पसंद था
कुछ को केवल ताली बजाने वाले पसंद थे
जिनके कंधे कमजोर थे वे बैग ढोने वाले पसंद करते थे
कलार्थी भोगार्थी दूसरी ओर थे
अतिरिक्त इसके यशार्थी विद्यार्थी भी थे
इस बात को कविता की तरह नहीं धारावाहिक की तरह देखिए
एक किरदार किस तरह दूसरे को पैदा करता है
नाभियाँ जुड़ने को ही बुद्ध ने कहा : प्रतीत्यसमुत्पाद।
- रचनाकार : रवि भूषण पाठक
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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