घृणा से भरे इस समय में

ghrina se bhare is samay mein

नरेश सक्सेना

नरेश सक्सेना

घृणा से भरे इस समय में

नरेश सक्सेना

और अधिकनरेश सक्सेना

    जितनी पत्तियाँ हैं

    उतने दुख हैं वृक्ष के

    जितनी शाखें हैं फल हैं उतनी आशंकाएँ

    जितनी गहरी छाया है

    यातना है उतनी गहरी

    जितनी गहरी जड़ें हैं

    जितनी गहराई तक उखड़ना है

    जितनी ऊँचाई है

    उतने ऊँचे होने हैं आघात

    बीज फिर भी क्यों होना चाहते हैं वृक्ष

    मनुष्यों की तरह शायद नहीं होते वृक्ष

    बीजों को वे अपनी बुरी स्मृतियाँ नहीं देते

    उन्हें वे सिर्फ़ फलों की फूलों की रंगों की ख़ुशबुओं की

    मौसमों और चीड़ियों की स्मृतियाँ ही देते हैं

    दुखद स्मृतियों से उन्हें रखते हैं मुक्त

    घृणा और हिंसा से भरे इस समय में

    पौधों को सींचते हुए

    करता हूँ कामना उस साहस की

    जिसके साथ मिट्टी में कर सकूँ प्रवेश

    एक बीज की तरह।

    स्रोत :
    • पुस्तक : समुद्र पर हो रही है बारिश (पृष्ठ 88)
    • रचनाकार : नरेश सक्सेना
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2001

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