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हस्तरेखा

hastarekha

बबलदास चावड़ा

बबलदास चावड़ा

हस्तरेखा

बबलदास चावड़ा

और अधिकबबलदास चावड़ा

    बचपन से ही

    जलता रहता था

    अपने साथ हुए अमानवीय व्यवहार से

    उस वक़्त अचूक ज्योतिष दर्शन का

    नामपट्ट पढ़कर सोचता था कि

    धन रेखा, पुत्र रेखा, भाग्य रेखा की ही तरह

    मेरे हाथ में

    अछूत रेखा” भी ज़रूर होगी!

    अन्यथा मैं दलित क्यों हूँ?

    हे हस्तरेखा विशारदो!

    तुम्हारे इस भानुमति के पिटारे में

    समानता की रेखा कहाँ छुपा रखी है?

    मैं वर्षों से कर रहा हूँ इंतज़ार कि

    समानता की रेखा मेरे हाथ में कब फूटेगी!

    अब तो यह रेखा विधाता को नहीं

    बल्कि मुझे ही बनानी पड़ेगी!!

    स्रोत :
    • पुस्तक : गुजराती दलित कविता (पृष्ठ 32)
    • संपादक : अनुवाद एवं संपादन : मालिनी गौतम
    • रचनाकार : बबलदास चावड़ा
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2022

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