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टालने से ठीक नहीं होती बीमारियाँ

talne se theek nahin hoti bimariyan

प्रदीप अवस्थी

प्रदीप अवस्थी

टालने से ठीक नहीं होती बीमारियाँ

प्रदीप अवस्थी

और अधिकप्रदीप अवस्थी

    बीमारी से कैसे मरते हैं लोग

    यह जाना बीते कुछ वर्षों में

    टालता रहा जब अपना इलाज

    छुपाता रहा घर से कि

    नहीं! नहीं! सब ठीक है

    ख़ुद को देता रहा दिलासा कि हाँ

    जाऊँगा अब अस्पताल ही डॉक्टर को दिखाने

    टालने से ठीक नहीं होती बीमारियाँ

    बड़ी होकर सामने आती हैं

    यूँ भी मरते हैं दुनिया भर में लोग

    कौन जाने क्यों ही कोई इंतज़ार करता है

    कि एक दिन आएगा

    जब वह सब ठीक कर लेगा

    उसके बस में होगा सब

    वह सुबह समय से उठेगा

    और ठीक समय पर सोएगा रात में

    एक दिन वह ठीक से समझ जाएगा—

    ‘ठीक’ की परिभाषा

    आलसी मत कह दो किसी को यूँ ही

    यदि वह जुटा नहीं पा रहा ताक़त

    बिस्तर से उठ भर पाने की

    उसके शरीर में यक़ीनन कहीं कोई विकलांगता नहीं

    आप दिमाग़ का नहीं सोचते लेकिन

    उदास को अकेले छोड़ना ही पड़ेगा

    पर उसे कोई दो ऐसा

    जो मिलता रहे कभी-कभी

    चिड़चिड़े को मत कह दो चिड़चिड़ा

    किसी के सामने मत करो

    उसकी कमज़ोरियों का ज़िक्र

    हर दुख को निकलते रहने दो आँखों से

    जो रोना चाहे वह रो पाए चोट लगने पर

    यह नेमत छीनी जाए किसी से

    तीन वक़्त का खाना

    और शांत सुंदर नींद रोज़

    इससे बड़ी कोई ज़रूरत नहीं

    इनसान के ठीक-ठाक जीने के लिए

    खाने में रोटी

    और तरह-तरह की सब्ज़ियाँ

    और दालें ज़रूर हों

    यह बात अनुभव से कहता हूँ

    दुख में भले कोई साथ हो

    सुख में हो।

    स्रोत :
    • रचनाकार : प्रदीप अवस्थी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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