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हमारा प्रेम तुम्हारी घृणा

hamara prem tumhari ghrina

आनंद गुप्ता

आनंद गुप्ता

हमारा प्रेम तुम्हारी घृणा

आनंद गुप्ता

और अधिकआनंद गुप्ता

    तुम्हारी सारी चालाकियाँ

    धरी की धरी रह जाएँगी

    तुम देख लेना

    हमारा प्रेम तुम्हारी घृणा पर भारी पड़ेगा

    हम तुम्हारे नापाक दिवास्वप्नों में

    बज्र की तरह आएँगे

    हम तुम्हारे इरादों पर

    प्रश्न की तरह आएँगे

    तुम्हारे हाथों में हथियार होगा

    हमारे हाथों में कविता

    तुम्हारी ज़ुबान पर ज़हर होगा

    हमारे हाथों में फूल

    तब हाथों में हाथ डाले लोगों से

    तुम्हें डर लगेगा

    और उससे भी ज़्यादा

    तुम्हें यहाँ की मूर्तियाँ डराएँगी

    जानते हो बाबू!

    हमारे शहर में मई की कड़कड़ाती धूप में भी

    डंठलों पर दहकता है लाल-लाल पलाश

    जब-जब हावड़ा ब्रिज से कोई नारा गूँजता है

    हुगली झुक कर

    उसे सलामी देती हुई गुज़रती है

    एक बच्चे की कोमल मुस्कान पर

    अभी भी ठहर जाता है हमारा शहर

    देख लेना

    तुम्हारे सारे समीकरणों को

    बंगाल की खाड़ी के

    किसी अँधेरे गर्त में जगह मिलेगी

    तुम्हारे बोए चरस उगाने से

    हमारी धरती अस्वीकार करती है

    हमारा शहर तुम्हारी प्रयोगशाला बनने से इंकार करता है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : आनंद गुप्ता
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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