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एक लम्हा उम्मीद का

ek lamha ummid ka

द्वारिका उनियाल

द्वारिका उनियाल

एक लम्हा उम्मीद का

द्वारिका उनियाल

और अधिकद्वारिका उनियाल

    क्षति में

    संघर्ष में

    एक अज़ीब-सी अनिश्चिता में

    कोई उम्मीद कैसे खोजे?

    कहाँ खोजे?

    और जब लगता है कि सब कुछ खो दिया है हमने

    तो शायद इस अल्फ़ाज़ में मायने मिलते हैं

    इस अल्फ़ाज़ का नाम है घर

    घर कोई ईंट की चार दीवारों पे तंगी महज़ एक छत नहीं

    वो एक एहसास है

    घर एक खुली सड़क है

    ना पलटा हुआ एक पन्ना

    वो पीछे छूट गया गरम दस्ताना

    जिसे लौटाने मैं वापस नहीं गया

    दीमकों के खाए हुए दरवाज़े,

    जंग लगे तालों के बीच

    चरमराती यादों को लिए खड़ा है

    एक मकान,

    हज़ारों मील दूर,

    एक याद लिए

    याद उस घर की

    अपनी ज़मीन की

    एक ज़माने की

    इस फ़साने की

    बूँद-बूँद रिसते

    इस लम्हे की तरह एक दिन

    वो यादें भी सूख जाएँगी

    घर और उसकी यादें

    वही हमें ज़िंदा रखती हैं

    उस बरगद की परछाई जैसे

    जिसकी उस डाल पे

    उन पंछियों ने एक घोंसला बनाया है

    उस घोंसले की कोई छत नहीं

    लेकिन आसमान को छूने की आशा है

    यही है बस

    एक लम्हा

    एक उम्मीद भरा लम्हा

    स्रोत :
    • रचनाकार : द्वारिका उनियाल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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