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गीली आँखों की हँसी के लिए

gili ankhon ki hansi ke liye

नीरव

नीरव

गीली आँखों की हँसी के लिए

नीरव

और अधिकनीरव

    तुम्हारे पतझर मन-मौसम के लिए लाऊँगा

    वसंत

    गाऊँगा गीत

    वन-पखेरूओं का भिनसारी कलरव

    अपने कंठ में उतारूँगा

    क्रीड़ाएँ करूँगा

    आषाढ़ की बदली बन

    बरस जाऊँगा

    पानी से आग्रह करूँगा वह तुमसे

    दोस्ती करे

    सारे रागों को आमंत्रित करूँगा

    फूलों को लिखूँगा पत्र

    कि

    आना भूलना मत

    तुम्हारे कोरे दुपट्टों के लिए

    कशीदाकारी सीखूँगा

    बनाऊँगा बेल-बूटे दुनिया जहान के

    इंद्रधनुष उठा लाऊँगा अपने इन कंधों पर

    भले वह दुर्गम पहाड़ी के पीछे खिलता हो

    तुम चाँद देखकर हाथ बढ़ाओ और

    अगली रात उसे अपनी आँख में उगता पाओ

    तो आश्चर्य कैसा

    असंभव कुछ भी नहीं है मेरे लिए

    तुम्हारी ये पनीली आँखें कुछ भी करवा सकती हैं मुझसे

    कुछ भी कर जाऊँगा मैं तुम्हारी इन पनीली आँखों के लिए।

    स्रोत :
    • रचनाकार : नीरव
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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