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घूर का दिया

ghoor ka diya

केशव शरण

केशव शरण

घूर का दिया

केशव शरण

और अधिककेशव शरण

    एक दिया

    जल रहा है

    गली में : घूर पर

    गली को प्रकाशित करता हुआ कुछ दूर तक

    हवा की लय पर नृत्यरत

    आत्मतुष्ट! आत्ममुग्ध!

    मुग्ध करता हुआ

    बाल-वृंदों को,

    हमको-तुमको,

    कीट-पतंगों को

    एक दिया

    जल रहा है

    गली में : घूर पर

    उसे नहीं क्षोभ,

    उसे नहीं मलाल

    कोई उसे जलाकर

    कहाँ रख गया है

    जल रहा है वह मुक्त भाव से, निष्कलंक

    शुद्ध है उसका अंतस्

    पवित्र है प्रकाश

    कल जलेंगे दिए

    द्वारा-द्वारा, आँगन-आँगन, मुँडेर-मुँडेर असंख्य

    मगर आज ही उसने दीवाली का

    श्रीगणेश कर दिया है

    अकेले ही, निस्संग

    चमक उठे हैं

    दमक उठे हैं

    उसके छोटे से प्रकाश-वृत्त में

    पेंट, दिस्टेंपर और चूने के रंग

    स्रोत :
    • पुस्तक : साक्षात्कार 273 (पृष्ठ 92)
    • संपादक : भगवत रावत
    • रचनाकार : केशव शरण

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