Font by Mehr Nastaliq Web

घर में नहीं है माँ की कोई तस्वीर

ghar mein nahin hai maan ki koi tasvir

आमिर हमज़ा

आमिर हमज़ा

घर में नहीं है माँ की कोई तस्वीर

आमिर हमज़ा

और अधिकआमिर हमज़ा

     

    जगजीत सिंह की ग़म से तर उस आवाज़ के लिए जिसके सहारे क़लम और काग़ज़ की मुसलसल गुफ़्तुगू होती रही

    चारपाई बुनती माँ से अपने बचपन में अक्सर मैं एक सवाल पूछता—
    माँ! मर जाने के बाद कहाँ चले जाते हैं लोग?
    माँ अनमने से कहती—
    मर जाने के बाद चिड़ियाँ बन जाते हैं लोग
    और फिर ऊँगली से अपनी
    चबूतरे पर खड़े दरख़्त-ए-शहतूत पर उछल कूद करती काना बाती करती
    कई कई सफ़ेद धारीदार गर्दन वाली चिड़ियों की ओर इशारा करते हुए
    कुछ नाम बुदबुदाती-फ़हमीदा अनीसा सकीमन असगरी रुखसाना वग़ैरह वग़ैरह
    और फिर कहती उन्हें देख रहा है—
    ये सब चिड़ियाँ भी तेरी माँ हैं!
    जो रोज़ सुबह-सुबह मुझसे मिलने आती हैं और
    कहते कहते माँ की आँखें भर आतीं—

    अक्सर माँ यह भी कहती मुझसे—
    पता है तुझे अच्छे लोग दुनिया से क्यों रुख़्सत हो जाते हैं जल्दी!
    मैं कहता—मैं नहीं जानता?
    माँ कहती—
    अल्लाह नहीं चाहता कि अच्छे लोग शरीक़-ए-गुनाह हो बैठें—

    अब जबकि माँ नहीं है
    है दफ़न दो गज़ ज़मीं के नीचे जिस पर कुछ रंग-बिरंगे फूल और कुछ घास उग आई है
    बची है महज़ मेरी स्मृतियों के आँगन में
    मुझे याद आता है—
    याद आता है कि ख़ुद के मरने से चंद महीनों पहले हमेशा की तरह एक रोज़ माँ बाज़ार गई और
    वहाँ से चूड़ियों, कपड़ों, और अपनी ज़रूरत की दीगर चीज़ों के साथ-साथ
    ख़रीद लाई बेजान चिड़ियों का एक जोड़ा और
    टाँग दिया उसे दरवाज़े के दाहिने कोने पर

    माँ को न बचा पाने की ग्लानि से भरा मैं एक बदनसीब बेटा
    अब वक़्त-ए-तन्हाई में
    जब-जब माँ के लाए बेजान चिड़ियों के इस जोड़े को देखता हूँ

    तो दरअस्ल—
    माँ को देखता हूँ—

    क्योंकि—
    मैं जिस मज़हब में पैदा हुआ जिस घर में पला-बढ़ा
    वहाँ दीवारों पर
    ज़िंदा या मुर्दा इंसानों की तस्वीर लगाने की सख़्त मनाही है—

    मैंने पूछी है इसके पीछे की वजह कई दफ़अ कबूतरबाज़ अब्बू से अपने
    कि आख़िर ऐसा क्यों?
    इबादत-ए-ख़ुदा के नाम पर सिर्फ़ नमाज़-ए-जुमा पढ़ने वाले मेरे कबूतरबाज़ अब्बू जिनकी ज़िंदगी का एक अहम हिस्सा-चीनी गजरा हरा मुखी दुबाज कलदुमा कलसिरा छ्पावा देवबंदी नस्ल के कबूतरों की बाज़ी लगाते गुज़रा…
    लड़खड़ाती ज़बान से अपनी कहते हैं—
    ‘घर में ज़िंदा या मुर्दा इंसानों की तस्वीर लगाने से नेकी के फ़रिश्ते नहीं आते’
    शायद कहते रहे होंगे कुछ ऐसा ही
    अब्बू के अब्बू और उनके भी अब्बू पीढ़ी-दर-पीढ़ी एक दूसरे से—

    पूछा है मैंने अपने मज़हब के और भी कई लोगों से कई कई मर्तबा
    कि आख़िर क्यों घर में ज़िंदा या मुर्दा इंसानों की तस्वीर लगाने की मनाही है?
    जवाब में मुझे सब फरिश्तों के ही पक्ष में खड़े नज़र आए
    और माँ कटघरे में!

    माँ! जिसे हमेशा से तस्वीर खिंचवाने का बड़ा शौक़ था
    सुपुर्द-ए-ख़ाक हो जाने के बाद
    घर में उसके हिस्से घर की कोई दीवार नहीं बल्कि मज़हबी बेड़ियाँ ही आईं
    जबकि लगाई जा सकती थी कोई एक तस्वीर उसकी
    घर की किसी एक दीवार पर कहीं—

    मेरे घर की किसी दीवार पर कहीं कोई तस्वीर-ए-माँ नहीं है
    मेरा मज़हब इसकी इजाज़त नहीं देता।

    स्रोत :
    • रचनाकार : आमिर हमज़ा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY