गौरैया को पसंद है गाँव का खुला आँगन
आँगन से लगा ओसारा
ओसारे के दीवालों के दरबे
जिस में होता है उसका आशियाना
उसे अच्छी लगती है वह बूढी माँ
जो उसके लिए छिड़कती है अन्न के दानें
वह नन्हीं लड़की जो एक कुल्हड़ में
रखती है मीठा पानी
तप्त गर्मी में उसका कंठ तर करने के लिए
उसके फुदकने को माना जाता है शुभ का संकेत
चहचहाने को मधुर संगीत
उजड़ते घरों वीरान होते गाँव में
जब नहीं बचेगी बढ़ी माँ
सयानी हो कर लड़की चली जाएगी कहीं दूर
तो बिना अन्न जल कैसे रहेगी नन्हीं चिड़िया
गौरैया नाम की नन्हीं चिडिया
बहुत दुखियारी है इस समय
लगातार झड़ते जा रहे हैं उसके पंख
शायद यह उसके लिए 'पंखझड़' का
समय हो, उसके ख़्याल में बहार
का मौसम नहीं होता कहीं शहरों में...!
- रचनाकार : लक्ष्मीकांत मुकुल
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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