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गहरी नींद के लिए अनंत की ओर

gahri neend ke liye anant ki or

सुरेंद्र स्निग्ध

सुरेंद्र स्निग्ध

गहरी नींद के लिए अनंत की ओर

सुरेंद्र स्निग्ध

और अधिकसुरेंद्र स्निग्ध

    किताबों के कई-कई गठ्ठर

    बेतरतीब पड़े हुए हैं

    इस सुनसान प्लेटफ़ार्म पर

    आने ही वाली है ट्रेन

    कई तरह की दुश्चिंताओं से घिरा खड़ा हूँ

    बीमार पत्नी के साथ

    इन गठ्ठरों के पास

    जाना है कहीं दूर

    ठसाठस भरे हुए किसी डब्बे में

    मैं पत्नी को चढ़ाऊँगा

    या इन किताबों को

    छूट जाएँगी सारी की सारी किताबें

    इसी प्लेटफ़ार्म पर

    छूट जाएँगे मिखाईल शोलोखोव

    'एँड क्वाइट फ्लोज डोन'

    के पाँचों भागों के साथ

    पढ़ने की हिम्मत ही जुटाता रह गया सब दिन

    प्लेटफ़ार्म पर ही

    फट्-चिट् कर उड़ जाएँगे

    ’कथा सरित्सागर‘ के सभी भाग

    ’दास कैपिटल‘ और लु शून के सभी वाल्यूम्स

    कोई उलटकर भी नहीं देखेगा

    मारीना त्स्वेतायेवा की पंक्तियाँ उड़ेंगी

    पन्नों के साथ इधर-उधर

    ’तुम्हारा नाम...' उफ़ क्या कहूँ

    जैसे चुंबन कोमल कुहरे का

    सहमी आँखों और पलकों का

    तुम्हारा नाम जैसे बर्फ़ पर चुंबन

    झीलें, शीतल झरने के पानी का घूँट

    गहरी नींद सुलाता है तुम्हारा नाम

    विपरीत दिशा से रही है ट्रेन

    धमक रही हैं हम तक पटरियाँ

    ट्रेन रुक गई है आउटर सिग्नल के पास

    ख़ामोश हो गई हैं पटरियाँ

    ख़ामोशी पसर रही है

    वहाँ तक

    जहाँ सोया है आकाश खेतों की

    मेड़ पर

    ट्रेन से उतरा नहीं है एक भी यात्री

    पत्नी की कमज़ोर बाँहें थाम

    मैं लपक पड़ा हूँ ट्रेन की ओर

    छोड़ दी है किताबों के छूट जाने की चिंता

    झटपट एक डब्बे में

    किसी तरह चढ़ सके हैं हम

    पूरी ट्रेन खाली ही खाली

    सभी डब्बों में बैठा है मरघटी सन्नाटा

    अचानक तूफ़ान की तरह

    दौड़ पड़ी है ट्रेन

    जिधर से आई थी

    उसी दिशा की ओर

    गहरे अवसाद से मैंने देखा पत्नी को

    उसकी आँखों से ढलक गई आँसू की बूँदें

    फिर किसी अज्ञात भय से

    सिमट गई मेरी बाँहों में

    चिड़िया की नन्हीं बच्ची-सी

    ट्रेन की गति

    निरंतर बढ़ती जा रही थी

    यह जा रही थी

    गहरी नींद के लिए अनंत की ओर

    स्रोत :
    • रचनाकार : सुरेंद्र स्निग्ध
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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