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गाँव वापसी

gaanv vapsi

कौशल किशोर

कौशल किशोर

गाँव वापसी

कौशल किशोर

और अधिककौशल किशोर

    लॉकडाउन के दिनों में

    जब लाखों लोग लौट रहे हैं गाँव

    मुझे भी बहुत याद रहा अपना गाँव

    शहर में रहते बरसों बीत गए

    यहाँ अपनी पहचान को बचाकर रखना आसान नही

    उसमें होती है माटी की सुगंध

    और होता है अपना लोक

    कोशिश यही रही कि बनूँ तो पेड़ बनूँ

    ठूँठ नहीं

    यह ज़िंदगी की आपाधापी है

    बरस पर बरस बीत गए

    मैं नहीं जा पाया गाँव

    भला हो नींद का और सपने का

    जहाँ अक्सर पहुँच जाता हूँ गाँव

    यह भी है बहुत ख़ूब

    कि जागते कभी गाँव जा पाया

    और सपने में

    कभी गाँव से लौट पाया

    गाँव से आती रहीं ख़बरें

    दुविधा से घेरती रहीं ख़बरें

    जैसे जब मैंने सोचा

    जाने को तैयार हुआ

    खेत के बिक जाने की ख़बर आई

    और पाँव वहीं ठिठक गए

    जाता तो क्या यह नहीं समझा जाता

    कि मैं पहुँचा हूँ अपना हिस्सा लेने

    इसी तरह की ख़बरें आती रही हैं

    कभी बाग़ के बिक जाने की

    तो कभी बगीचे के

    वह आख़िरी ख़बर थी

    कि घर भी रामपूजन सोनार के हाथ बेच

    सभी चले गए शहर

    यह ख़बरों के सिल-सिले का ही नहीं

    आस की अंतिम डोर के टूटने की ख़बर थी

    मैंने कभी नहीं चाहा

    खेत-बघार, बाग़-बगीचा

    माल-मवेशी, घर-दुआर

    उनमें अपना हिस्सा

    यही सोचता रहा कि अपने जाँगर से

    जो पाया, बना पाया

    वही अपना है, उसी पर अधिकर है मेरा

    इससे अधिक कुछ नहीं

    क्या पेड़ का धरती से अलग

    कोई अस्तित्व हो सकता है

    यही रिश्ता है मेरा

    वहाँ मेरा बचपन है, उसकी किलकारियाँ हैं

    मेरी हँसी है, रुलाई है, तरुणाई है

    बाबा और दादी का इंतज़ार है

    अम्मा और बाबूजी का प्यार है

    वहाँ एक दुनिया है

    जिसने मुझे कविता की तरह रचा है

    अब वहाँ मेरा कुछ भी नहीं है

    बस बचा है मेरे लिए तो सिर्फ़ गाँव का नाम

    कोई पूछता भी है

    तो बताने से हिचकता हूँ, झिझकता हूँ

    पहचान भी दिन-दिन घिस रही है

    वह धुँधली होती जा रही है

    यह संकट की घड़ी है

    देश लॉक डाउन में है

    लोग लौट रहे हैं अपने गाँव की ओर

    सोचता हूँ

    इस संकट से मुझे दो-चार होना पड़ता

    लौटने वालों की तरह मुझे भी लौटना होता

    क्या होता मेरा?

    शहर होता, गाँव होता

    कहाँ होता मेरा बसेरा?

    स्रोत :
    • रचनाकार : कौशल किशोर
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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