विसर्जन के लिए सुंदरवन में सोने की नाव
wisarjan ke liye sundarwan mein sone ki naw
नवारुण भट्टाचार्य
Navarun Bhattacharya
विसर्जन के लिए सुंदरवन में सोने की नाव
wisarjan ke liye sundarwan mein sone ki naw
Navarun Bhattacharya
नवारुण भट्टाचार्य
और अधिकनवारुण भट्टाचार्य
वह उतरा रहा है गिद्ध का अधखाया बच्चा
लकड़ी का एक लट्ठा उसे ठेलता है तिरछी रेखा में
लगता है एक असामाजिक लज्जा से औंधा
बच्चा उलट गया है नमक के पानी में
मुँह गड़ाए हुए मातला नदी की गहरी सतह में
दांड़ के हिलने से टेढ़ी चलती हुई
राहत के सामान से भरी सोने की नाव
चलती जाती है सुंदरी घाट की ओर
स्त्री की आँख की पुतलियाँ अंधी हैं सर्द हवा में
स्पर्श-आतुर जल झरता है उस देह मंदिर में
घिरे हुए राहत-शिविर में जब बच्चों को दिए जाते हैं
संतरे और साबूदाना, बेबीफूड ख़ाली है किसी की गोद
उस पार मोउखालि केइखालि और कितने ही ठिकाने
मस्जिदबाड़ी की मिट्टी-मिट्टी के असंख्य झोंपड़े
यह सब था गाँव में अब सब है उजाड़
बांटू हॉटेनटाट और विभिन्न जातियों के लोग
वे भी खाते हैं इस रोमांटिक साइक्लोन के थपेड़े
पानी से घिरे लोग हिड़हिड़ करते हाज़िर हैं दूरदर्शन के समाचार में
तालदी राहत शिविर में शीत से काँपता है उनका थरथर जीवन
ड्राइडोल में लटके हैं जम्हाइयाँ लेते फूले-सूजे मनुष्य
ज़रूर पहुँच गई है ढेरों-ढेर सामान लेकर सोने की नाव
शहरी शहर में सुंदर हैं, गाँववासी सुंदर हैं बाढ़ में
समाचार में फूले हुए होंठ गोलाबाड़ी लाट पर
उतरकर देखते हैं बेबाक सब कुछ लुटा हुआ
प्राण नहीं, कुछ नहीं, इसलिए समाचार
सुबह का उनींदा गिद्ध डैने झाड़ता है
चाँदनी में बच्चे को बैठा हुआ देखकर
इंद्रनाथ ने सुना उसे बुला रहा है उसका छोटा भाई
सोने को नाव के सामने अनंत शांति का एक पारावार
सड़े-बाँस गले-हाड़ से भरा पानी खलबलाता है
लाट से तट के इलाक़े तक फैले हैं कीचड़-सने घोंघे
गिद्ध के सामने एक जटिल दुरूह समस्या
गाय खाने पर जात जाएगी अगर गोद है बच्चों से भरी हुई
सोने की नाव खींचता है आँसुओं का छलछलाता ज्वार
केकड़े के बिल से सम्मोहित उठता है चाँद का चुंबक
आकर्षित जल अगर उसके गले से लगा हो क्षणिक यौन में
कछुए के विस्मय से स्तब्ध है जंगली घास की मेंड़
विस्फोटक बिंबों पर पानी लाखों दाँतों से काटता है
फटे हुए उथले ताल को
एशिया के किसी घर में ठंढ में सोते हैं जो करोड़ों लोग
मरे हुए इधर-उधर चक्कर खाते हैं, खींचतान करते हैं, कीचड़ में
छिप जाते हैं
ढेर-ढेर भारी दूध-भरा धान काटते हैं पानी के हँसिये
मृत मछुआरे का जाल उसके शरीर की तरह उलझा-पुलझा है
ठहरे हुए खंडचित्र पर कितनी अच्छी लगती है सोने की नाव
तुम अगर चाहते हो पुण्य इसी लग्न में निपटा लो अंतिम संस्कार
जलकौवा आता है तारों के खिले हुए खील खाने
भूल जाओ दुख, कौन तुम्हारी माँ थी कौन था पिता
घासफूस जलाओ, मिट्टी दो, अभागी की महिमा है अपार
सुंदरवन के तट पर भीगे, नमक में डूबे मनुष्यों का मिटता हुआ धुआँ
लिपटता है आसमान के हेलिकॉप्टर के चार पंखों से
जितने दुर्बल और धर्मभीरु लोग उतनी ही अपार कठोर है सज़ा
अंतिम संस्कार निपटाओ, फेंको वोट की रिलीफ़, कहो ये रही
तुम्हारी पुड़िया
प्रकृति की घनघटा हतबुद्धि करती है प्रभु, अभी तक
जब तक बदन पर किसी का कफ़न न ओढ़ ले ज्वराक्रांत
बच्चा जानता है जितनी मिट्टी पड़ती है उससे कहीं ज़्यादा की
जाती है दर्ज
गजमंत्री संतुष्ट है रिश्वत के ख़याली जंगल में
कौन दल, कौन मत, कौन मोह और प्रमेह
चिढ़ाने का साहस करेगा कुलक और ठेकेदार को
इक्यासी के सुंदरवन में नियति का आविर्भाव
पागल जल की धार से कौन बचाये गाय या बकरी को
किसकी हिम्मत है भँवर से खींच ले डरे हुए वृद्ध को
फूस की छत से सरकती है फूस सरकते है बाँस, नीचे हैं लोग
कौन मूर्ख खोजना चाहता है लुप्त मिट हुए घर को
वह देखो राष्ट्रविज्ञानी की अर्थनीति या विकृत बौद्धिक बकवास
गमकती हुई चल पड़ी है सुंदरी बंगाल में सोने की नाव
इसी के समांतर कलकत्ता महानगर में सरकारी पर्यटन उत्सव
चलो सब झुंड बनाकर देख आएँ महामति कैंनिंग की क़ब्र
भाग्य की कृपा हुई तो कैमरे में आ ही जाएँगे रंगीन कंकाल
या ताज़ा खोपड़ियाँ
श्मशान के क़रीब पानी होता है, पर देखा है क्या पानी का विस्तीर्ण श्मशान
नमकीन मिट्टी देखो बाँझ की तरह हँसती है पागलों की हँसी
क्षत-विक्षत स्तन, डूबी हुई योनि, उभरे हुए नमक के पत्थर की
प्रतिमा
चारों पैर उठाए हुए बेकार गाय या नमकीन जल में डूबकर मरी
हुई मत्स्य-योजना की मछली
उथले जल में सुंदरी शिंगी की मृत्यु, राजहंसिनी जैसा नृत्य
कुछ बेवकूफ़ वही मछलियाँ खाकर चले गए हैं भूख के उस पार
इस तरफ़ के जंगली लोग पानी उतरने पर उभर आते हैं
चिंताहीन, जड़बुद्धि हैं वे, न काटते हैं न छीनते हैं न बटोरते हैं
सोने की नाव की ओर अपलक देखते नहीं, आश्वासन भी नहीं सुनते
इन लोगों के बदन पर चिपकी हैं जोंकें
इन लोगों के मन पर चिपकी हैं जोंकें
इतने लुटे-पिटे ये लोग दूसरे मनुष्यों की तुलना में भारहीन
तीन दिन में दो सौ ग्राम चिवड़े पाकर चबाते हैं धीरे-धीरे
खट्टी खिचड़ी के बीच से तेज़ जीभ निकालता है गुप्त कोलेरा
शहर में आते हैं पेट भरने को पंगु बने क्रीतदास
उनमें कुछ क्रिमिनल भी हैं ज़रूर कई गंदे प्रस्ताव देते हैं रात में
कहते हैं इस पदस्त शृ-गालवाही सोने की नाव को डुबो दो गहरे
क़ब्र में डाल दो छद्म बाँध बाँधकर, उथले पानी के इलाक़े में
टूटी दीवारों की लाट का महाजन असहाय है
दारोग़ा के आने में देरी देखकर
दिन के मोती के बाद देखो ढक्कन बंद करती है अंधी सीप
त्रिकालज्ञ हेताल पेड़ों के माथे घेरे है आरक्त पश्चिम
कीचड़-सना बाँस-हाड़ उठाओ आढ़त नाव की मृतदेह डालते हुए
नमकीन झाग वाले जिस युवक को जगह नहीं दी सोने की नाव ने
किनारे पर अकेला वह सुनता है डीजल इंजन की डूबती हुई आवाज़
इसीलिए पैदल जाता है, उसके पैरों से टकराते हैं शंखचूड़ी पहने
हुए हाथ
मोतियाबिंद और कई मृतकों की कीचड़-भरी आँखों की पलकें
नदी के ज्वार से लौटता है युवक भिखारी बनकर इसी घड़ी में
बनते हैं राजपुत्र भी, मराली की मरती हुई नदी, नदी के सूखे तट
पैदल ही पार करता है जैसे कोई जीवित मूर्ति
नंगी हवा की नोक उसके बदन पर खींचती है लकीरें
फ़रार तस्करों, वेश्याओं, बुद्धिजीवियों, बनियों के शहर में
बलात्कार-दर्शन में बहुमुखी लोभी पाप सड़न के नगर में
अकस्मात फट पड़ते हैं ढोल नगाड़े बेवक़्त बजता है रेडियो
और किसी के रूखे, अनाथ, उछृंखल बाल बिखरते उड़ते छा जाते हैं
टीवी के पर्दे पर
पितृ-मातृहीन वह कौन पुकारता है प्रेत-आवाज़ में
भाई रे—समुद्रतट का इलाक़ा डूब गया है
बाघ और वनदेवी युवक का हाथ पकड़
पिछली रात पगडंडियों से होकर आ गए हैं शहर में।
wo utra raha hai giddh ka adhkhaya bachcha
lakDi ka ek lattha use thelta hai tirchhi rekha mein
lagta hai ek asamajik lajja se aundha
bachcha ulat gaya hai namak ke pani mein
munh gaDaye hue matla nadi ki gahri satah mein
danD ke hilne se teDhi chalti hui
rahat ke saman se bhari sone ki naw
chalti jati hai sundri ghat ki or
istri ki ankh ki putliyan andhi hain sard hawa mein
sparsh aatur jal jharta hai us deh mandir mein
ghire hue rahat shiwir mein jab bachchon ko diye jate hain
santre aur sabudana, bebiphuD khali hai kisi ki god
us par moukhali keikhali aur kitne hi thikane
masjidbaDi ki mitti mitti ke asankhya jhompDe
ye sab tha ganw mein ab sab hai ujaD
bantu hautentat aur wibhinn jatiyon ke log
we bhi khate hain is romantik saiklon ke thapeDe
pani se ghire log hiDhiD karte hazir hain durdarshan ke samachar mein
taldi rahat shiwir mein sheet se kanpta hai unka tharthar jiwan
DraiDol mein latke hain jamhaiyan lete phule suje manushya
zarur pahunch gai hai Dheron Dher saman lekar sone ki naw
shahri shahr mein sundar hain, ganwwasi sundar hain baDh mein
samachar mein phule hue honth golabaDi lat par
utarkar dekhte hain bebak sab kuch luta hua
paran nahin, kuch nahin, isliye samachar
subah ka uninda giddh Daine jhaDta hai
chandni mein bachche ko baitha hua dekhkar
indrnath ne suna use bula raha hai uska chhota bhai
sone ko naw ke samne anant shanti ka ek parawar
saDe bans gale haD se bhara pani khalablata hai
lat se tat ke ilaqe tak phaile hain kichaD sane ghonghe
giddh ke samne ek jatil duruh samasya
gay khane par jat jayegi agar god hai bachchon se bhari hui
sone ki naw khinchta hai ansuon ka chhalachhlata jwar
kekDe ke bil se sammohit uthta hai chand ka chumbak
akarshait jal agar uske gale se laga ho kshanaik yaun mein
kachhue ke wismay se stabdh hai jangli ghas ki meinD
wisphotak bimbon par pani lakhon danton se katta hai
phate hue uthle tal ko
asia ke kisi ghar mein thanDh mein sote hain jo karoDon log
mare hue idhar udhar chakkar khate hain, khinchtan karte hain, kichaD mein
chhip jate hain
Dher Dher bhari doodh bhara dhan katte hain pani ke hansiye
mrit machhuare ka jal uske sharir ki tarah uljha puljha hai
thahre hue khanDchitr par kitni achchhi lagti hai sone ki naw
tum agar chahte ho punny isi lagn mein nipta lo antim sanskar
jalkauwa aata hai taron ke khile hue kheel khane
bhool jao dukh, kaun tumhari man thi kaun tha pita
ghasphus jalao, mitti do, abhagi ki mahima hai apar
sundarwan ke tat par bhige, namak mein Dube manushyon ka mitta hua dhuan
lipatta hai asman ke helikauptar ke chaar pankhon se
jitne durbal aur dharmabhiru log utni hi apar kathor hai saza
antim sanskar niptao, phenko wote ki relief, kaho ye rahi
tumhari puDiya
prakrti ki ghanaghta hatbuddhi karti hai prabhu, abhi tak
jab tak badan par kisi ka kafan na oDh le jwrakrant
bachcha janta hai jitni mitti paDti hai usse kahin zyada ki
jati hai darj
gajmantri santusht hai rishwat ke khayali jangal mein
kaun dal, kaun mat, kaun moh aur prameh
chiDhane ka sahas karega kulak aur thekedar ko
ikyasi ke sundarwan mein niyti ka awirbhaw
pagal jal ki dhaar se kaun bachaye gay ya bakri ko
kiski himmat hai bhanwar se kheench le Dare hue wriddh ko
phoos ki chhat se sarakti hai phoos sarakte hai bans, niche hain log
kaun moorkh khojna chahta hai lupt mit hue ghar ko
wo dekho rashtrwigyani ki arthniti ya wikrt bauddhik bakwas
gamakti hui chal paDi hai sundri bangal mein sone ki naw
isi ke samantar kalkatta mahangar mein sarkari paryatan utsaw
chalo sab jhunD banakar dekh ayen mahamati kainning ki qabr
bhagya ki kripa hui to camere mein aa hi jayenge rangin kankal
ya taza khopDiyan
shmshan ke qarib pani hota hai, par dekha hai kya pani ka wistirn shmshan
namkin mitti dekho banjh ki tarah hansti hai paglon ki hansi
kshat wikshat stan, Dubi hui yoni, ubhre hue namak ke patthar ki
pratima
charon pair uthaye hue bekar gay ya namkin jal mein Dubkar mari
hui matsy yojna ki machhli
uthle jal mein sundri shingi ki mirtyu, rajhansini jaisa nrity
kuch bewakuf wahi machhliyan khakar chale gaye hain bhookh ke us par
is taraf ke jangli log pani utarne par ubhar aate hain
chintahin, jaDbuddhi hain we, na katte hain na chhinte hain na batorte hain
sone ki naw ki or aplak dekhte nahin, ashwasan bhi nahin sunte
in logon ke badan par chipki hain jonken
in logon ke man par chipki hain jonken
itne lute pite ye log dusre manushyon ki tulna mein bharahin
teen din mein do sau gram chiwDe pakar chabate hain dhire dhire
khatti khichDi ke beech se tez jeebh nikalta hai gupt kolera
shahr mein aate hain pet bharne ko pangu bane kritadas
unmen kuch kriminal bhi hain zarur kai gande prastaw dete hain raat mein
kahte hain is padast shri galwahi sone ki naw ko Dubo do gahre
qabr mein Dal do chhadm bandh bandhakar, uthle pani ke ilaqe mein
tuti diwaron ki lat ka mahajan asahaye hai
darogha ke aane mein deri dekhkar
din ke moti ke baad dekho Dhakkan band karti hai andhi seep
trikalagya hetal peDon ke mathe ghere hai arakt pashchim
kichaD sana bans haD uthao aDhat naw ki mritdeh Dalte hue
namkin jhag wale jis yuwak ko jagah nahin di sone ki naw ne
kinare par akela wo sunta hai Dijal injan ki Dubti hui awaz
isiliye paidal jata hai, uske pairon se takrate hain shankhchuDi pahne
hue hath
motiyabind aur kai mritkon ki kichaD bhari ankhon ki palken
nadi ke jwar se lautta hai yuwak bhikhari bankar isi ghaDi mein
bante hain rajaputr bhi, marali ki marti hui nadi, nadi ke sukhe tat
paidal hi par karta hai jaise koi jiwit murti
nangi hawa ki nok uske badan par khinchti hai lakiren
farar taskron, weshyaon, buddhijiwiyon, baniyon ke shahr mein
balatkar darshan mein bahumukhi lobhi pap saDan ke nagar mein
akasmat phat paDte hain Dhol nagaDe bewaqt bajta hai radio
aur kisi ke rukhe, anath, uchhrinkhal baal bikharte uDte chha jate hain
tiwi ke parde par
pitr matrihin wo kaun pukarta hai pret awaz mein
bhai re—samudrtat ka ilaqa Doob gaya hai
bagh aur wandewi yuwak ka hath pakaD
pichhli raat pagDanDiyon se hokar aa gaye hain shahr mein
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bagh aur wandewi yuwak ka hath pakaD
pichhli raat pagDanDiyon se hokar aa gaye hain shahr mein
- पुस्तक : यह मृत्यु उपत्यका नहीं है मेरा देश (पृष्ठ 73)
- रचनाकार : नवारुण भट्टाचार्य
- प्रकाशन : राधाकृष्ण प्रकाशन
- संस्करण : 1985
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