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फूल से आग

phool se aag

अनुवाद : सिद्धनाथ प्रसाद

लनचेनबा मीतै

लनचेनबा मीतै

फूल से आग

लनचेनबा मीतै

और अधिकलनचेनबा मीतै

    तुम अपरिचित हो फूल की सुगंध से। नहीं आता सूँघना भी।

    तुम अनजान हो फूलों के रूप से। नहीं जानते उन्हें निहारना भी।

    तुम्हें तो बस तोड़ना है। मसलना है। कुचलना है।

    या फिर :

    नग्न धूप ज्वाला का

    रोम-रोम से

    चिंगारियाँ बरसाता नृत्य

    कोलतार की सड़क के बीचोंबीच फेंकना है।

    उसी से हो गईं हैं एक-एक कर

    कोमल-मृदुल पंखड़ियाँ धधकती ज्वाला

    मनोहारी सुगंध

    नहीं सह सकती आग का ताप।

    स्रोत :
    • पुस्तक : तुझे नहीं खेया नाव (पृष्ठ 46)
    • संपादक : देवराज
    • रचनाकार : लनचेनबा मीतै
    • प्रकाशन : हिंदी लेखक मंच, मणिपुर
    • संस्करण : 2000

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