Font by Mehr Nastaliq Web

आगि

aagi

हरिमोहन झा

अन्य

अन्य

और अधिकहरिमोहन झा

    राति मे हम स्वप्न देखल, आगि लागल, घर जरैये,

    चार सभ पुरना धधकि कय, जोर सँ धू धू करैये,

    जारि रहल अछि सनसना कय, पाँजि कर पोथाक ढेरी,

    राख भय सिद्धान्त सभ, पछबाक लहरा मे उड़ैये,

    जरि रहल श्रीकान्त झा छथि, महादेव झा जरै छथि,

    पाँजि कछुआ और नरहा, फड़फड़ा कय सभ जरैये,

    जरि रहल पतड़ाक पुच्छड़, और पद्धति कर्मकाण्डक,

    सकल आचारक पेटारी बीच धधरा मे पड़ैये,

    खसि रहल अछि मूल खंभा, गोत्र केर रस्सी टुटैये,

    वंश केर फट्ठा लहकि कय, कोइला भय भय झड़ैये,

    जाति पाँतिक ससरफानी, आगिमे पड़ि भस्म होइये,

    और मर्यादाक बन्धन पटपटापट कय टुटैये,

    पांग चपकन मिर्जई सभ, छार जरि कय भय रहल अछि

    युग युगान्तर केर पर्दा आइ गर्दा मे मिलैये,

    छोट पैघक भेद सूचक शृंखला-सीढ़ी टुटैये,

    भीत केर जे नीव छल हरिसिंहदेवक से ढहैये,

    होलिका केर एहि दहन मे, भस्म सभ किछु भय रहल अछि,

    किन्तु ओहि चिताक ऊपर, एक नवका घर उठैये।

    स्रोत :
    • पुस्तक : हरिमोहन झा रचनावली खण्ड-4 (पृष्ठ 29)
    • रचनाकार : हरिमोहन झा
    • प्रकाशन : जनसीदन प्रकाशन
    • संस्करण : 1999

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY