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सिरहाने में रखी है किताब

sirhane mein rakhi hai kitab

अलका सिन्हा

अलका सिन्हा

सिरहाने में रखी है किताब

अलका सिन्हा

और अधिकअलका सिन्हा

    कई दिनों तक पड़ी रहीं

    मेरी पसंद की किताबें

    मेरे सिरहाने

    पढ़ती रही मैं उन्हें

    किसी-किसी बहाने।

    कभी नींद लाने की कोशिश में

    तो कभी जाग जाने की ख़ातिर

    कभी खुद-बुदाते विचारों को राह दिखाने

    तो कभी अहसास को सहलाने

    उनसे सुख-दुख बतिया लेती थी

    अपना दिल बहला लेती थी

    फिर किसी दिन

    कमरा समेटने की गरज से

    इन्हें उठाकर बुक शेल्फ़ में सजा दिया।

    फिर बात तो कम ही होती मगर

    शीशे से झाँकती किताबें तो लगता

    प्रवासी बच्चों ने हाल-चाल पूछा

    मिलने का तक़ादा किया।

    धीरे-धीरे बढ़ने लगीं दूरियाँ

    प्रवास में रहने की मजबूरियाँ

    संवाद के प्रसंग घटने लगे

    हम एक-दूसरे से कटने लगे

    बच्चों को मिल गई

    वहीं की नागरिकता

    यहाँ बढ़ती रही रिक्तता...

    एक दिन शेल्फ़ की किताबों ने पास बुलाया

    आसान-सा रास्ता सुझाया

    किताबें मुस्कराईं

    मेरे हाथों तक चली आईं

    पन्ना-दर-पन्ना जुड़ते गए अहसास

    जितना वह आती गई पास।

    प्रवास से लौटकर ये किताबें

    फिर बैठी हैं मेरे सिरहाने

    पढ़ती हूँ मैं उन्हें

    किसी-न-किसी बहाने।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अलका सिन्हा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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