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बिजूका

bijuka

खेत में किसान चिल्लाता है

दूर तर गूँजती है उसकी पुकार

जिसे सुनकर झट से उड़ जाते हैं

खेत चुगने को उतरे पक्षी।

पर यह विचित्र है

कि खेत में खड़े बिजूके को देखकर

वे मँडराते तक नहीं आस-पास।

वह बिना कान के सुनता है

वह निर्निमेष देखता रहता है सब कुछ बिना नयन के

घड़े से बने उसके भेजे में

समाया हुआ है केवल अंधकार

फिर भी वह बैठा है प्रकाश का दूत बनकर

साधता हुआ हर काम

बिजूका जानता है कि कैसे चलती हैं सरकारें।

वह विकट मीमांसक की तरह

बिना मांस के मीमांसा करता रहता है

वह महावैयाकरण की तरह है

बिना बोले कर सकता है व्याख्या

वह अपने में लीन

अपना ही करता उपकार

वेदांत में जिसे कहते हैं एकपुरुष

कुछ उसके जैसा।

स्रोत :
  • रचनाकार : राधावल्लभ त्रिपाठी
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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