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चेहरा

chehra

महेश वर्मा

पता नहीं तुम कितने अंतिम संस्कारों में शामिल हुए

कितनी लाशें देखीं लेकिन फिर ज़ोर देता हूँ इस पर

कि मृत्यु इंसान का चेहरा अप्रतिम रूप से बदल देती है

यह मुखमुद्रा तुमने इसके जीते जी कभी नहीं देखी थी

यह अपने मन का रहस्य लेकर जा रहा है और निश्चय ही नहीं लौटेगा

पता नहीं क्या करता इसका अगर कुछ और दिन रुकता कि

कौन-सा स्पर्श उसकी त्वचा में सिहरन भर देता था और उसकी साँसों में आग

कौन-सी याद उसकी आत्मा को भर देती थी ख़ालीपन से

किन कंदराओं से आता था उसका वीतराग मौन और उसकी धूल भरी

आवाज़ यह उसका विनोद है, उसका असमंजस उसकी पीड़ा है और उसका पापबोध

जो उस रहस्य से जुडा है निश्चय ही—जिसे लेकर जा रहा है

या उसका क्षमाभाव है

और बदला ले पाने को ऐंठती उसकी आत्मा की प्रतिछवि है उसके चेहरे पर

जो उसे बनाती है अभेद्य और अनिर्वचनीय

एक प्रेमनिवेदन जो किया नहीं गया

एक हत्यारी इच्छा, हिंसात्मक वासना,

मौक़ा चूकी दयालुताएँ और प्रतिउत्तर के वाक्य

ये उसकी आत्मा की बेचैन तहों में सोते थे आज तक

अब इन्हें एक अँधेरे बक्से में रख दिया जाएगा

प्रार्थना का कोई भी सफ़ेद फूल,

करुणा का कोई भी वाक्य इन तक नहीं पहुँच पाएगा

और तुम्हें यह तो मानना ही होगा कि

तुम्हारी काव्यात्मक उदासी से बड़ी चीज़ थी

उसके मन का रहस्य

बाक़ी संसार आज उससे छोटा ही रहेगा।

स्रोत :
  • पुस्तक : धूल की जगह (पृष्ठ 31)
  • रचनाकार : महेश वर्मा
  • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
  • संस्करण : 2018

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