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आवरण

awarn

आँखों का अस्तित्व

हर तरह की सत्ता के लिए ख़तरा है

इसलिए आए दिन आँखें

फोड़ दिए जाने की ख़बरें हैं

इससे पहले आपकी भी आँखें फोड़ दी जाएँ

नज़र और धूप के चश्मे ख़रीदिए

धूप के चश्मे पूँजीवादी सभ्यताओं का आविष्कार हैं

और फूटती आँखें हमारे समय का सच

ये चश्मे हमें दुनिया में सब कुछ सही होने का भ्रम कराते हैं

दिखाते हैं कि अब भी हमारे पाँव के नीचे ज़मीन बाक़ी है

लेकिन इस दुनिया ने आवरण ओढ़ रखे हैं

हमने मूर्तियों को नैतिकताओं का आदर्श बताया

और इन्हीं मूर्तियों के अपक्षय से सहज होते गए

पलक झपकने के पहले हम कुछ और होते हैं

पलक झपकने के बाद कुछ और

परिवर्तन अनिमिष होते हैं

व्यथा यह है कि त्रासदियाँ अनिमिष नहीं होतीं

ये त्रासदियों का दौर है और हम निमित्त

शून्य हमारी संवेदनाओं का नियतांक

रिक्तता सभ्यताओं का आवृत्त सच

और त्रासदियाँ

इन्हीं रिक्तताओं को भरने की

असफल चेष्टाओं का प्रतिफल

ताम्रिकाओं पर नहीं लिखे गए

विवर्तनिक परिसीमन

सकरुण अवसान

परिष्कृत वंचनाएँ

सहस्राब्दियों का तिमिर

नैतिकताओं का आयतन

प्रतिध्वनियों के अतिशय में हम नहीं सुन पाए

नेपथ्य का कोलाहल

प्रायिकताओं का अपवर्तनांक

हमें भावशून्यता तक ले आया

और आज जब

आँखें फोड़ना राज्य प्रायोजित है

तब बेहतर यही है कि

नज़र और धूप के चश्मे ख़रीदिए!

स्रोत :
  • रचनाकार : मनीष कुमार यादव
  • प्रकाशन : सदानीरा वेब पत्रिका
  • रचनाकार : मनीष कुमार यादव
  • प्रकाशन : सदानीरा वेब पत्रिका

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