Font by Mehr Nastaliq Web

आत्महत्या के विरुद्ध

atmahatya ke wiruddh

रघुवीर सहाय

रघुवीर सहाय

आत्महत्या के विरुद्ध

रघुवीर सहाय

और अधिकरघुवीर सहाय

    समय गया है जब तब कहता है संपादकीय

    हर बार दस बरस पहले मैं कह चुका होता हूँ कि समय गया है।

    एक ग़रीबी, ऊबी, पीली, रोशनी, बीवी

    रोशनी, धुंध, जाला, यमन, हरमुनियम अदृश्य

    डब्बाबंद शोर

    गाती गला भींच आकाशवाणी

    अंत में टडंग।

    अकादमी की महापरिषद की अनंत बैठक

    अदबदाकर निश्चित कर देती है जब कुछ और नहीं पाती

    तो ऊब का स्तर

    एक सीली उँगली का निशान डाल दस्तख़त कर

    तले हुए नाश्ते की तेलौस मेज़ पर।

    नगरनिगम ने त्योहार जो मनाया तो जनसभा की

    मंथर मटकता मंत्री मुसद्दीलाल महंत मंच पर चढ़ा

    छाती पर जनता की

    वसंती रंग जानते थे पंसारी मुसद्दीलाल

    दोनों ने राय दी

    कंधे से कंधा भिड़ा ले चलो

    पालकी।

    कल से ज़्यादा लोग पास मँडराते हैं

    ज़रूरत से ज़्यादा आस-पास ज़रूरत से ज़्यादा नीरोग

    शक से कि व्यर्थ है जो मैं कर रहा हूँ

    क्योंकि जो कह रहा हूँ उसमें अर्थ है।

    कल मैंने उसे देखा लाख चेहरों में एक वह चेहरा

    कुढ़ता हुआ और उलझा हुआ वह उदास कितना बोदा

    वही था नाटक का मुख्य पात्र

    पर उसकी ठस पीठ पर मैं हाथ रख सका

    वह बहुत चिकनी थी।

    लौट आओ फिर उसी खाते-पीते स्वर्ग में

    पिटे हुए नेता, पिटे अनुचर बुलाते हैं

    मार फड़फड़ाते हैं पंख साल दो साल गले बँधी घंटियाँ

    पढ़ी-लिखी गर्दनें बजाती हैं फिर उड़ जाता है विचार

    हम रह जाते हैं अधेड़

    कुछ होगा कुछ होगा अगर मैं बोलूँगा

    टूटे टूटे तिलिस्म सत्ता का मेरे अंदर एक कायर टूटेगा टूट

    मेरे मन टूट एक बार सही तरह

    अच्छी तरह टूट मत झूठमूठ ऊब मत रूठ

    मत डूब सिर्फ टूट जैसे कि परसों के बाद

    वह आया बैठ गया आदतन एक बहस छेड़कर

    गया एकाएक बाहर ज़ोरों से एक नक़ली दरवाज़ा

    भेड़कर

    दर्द दर्द मैंने कहा क्या अब नहीं होगा

    हर दिन मनुष्य से एक दर्जा नीचे रहने का दर्द

    गरजा मुस्टंडा विचारक—समय गया है

    कि रामलाल कुचला हुआ पाँव जो घसीटकर

    चलता है अर्थहीन हो जाए।

    छुओ

    मेरे बच्चे का मुँह

    गाल नहीं जैसा विज्ञापन में छपा

    ओंठ नहीं

    मुँह

    पता चला जान का शोर डर कोई लगा

    नहीं—बोला मेरा भाई मुझे पाँव-तले

    रौंदकर, अंग्रेज़ी।

    कितना आसान है पागल हो जाना

    और भी जब उस पर इनाम मिलता है।

    नक़ली दरवाज़े पीटते हैं जवान हाथों को

    काम सर को आराम मिलता है : दूर

    राजधानी से कोई कस्बा दुपहर बाद छटपटाता है

    एक फटा कोट एक हिलती चौकी एक लालटेन

    दोनों, बाप मिस्तरी, और बीस बरस का नरेन

    दोनों पहले से जानते हैं पेंच की मरी हुई चूड़ियाँ

    नेहरू-युग के औज़ारों को मुसद्दीलाल की सबसे बड़ी देन

    अस्पताल में मरीज़ छोड़कर नहीं सकता तीमारदार

    दूसरे दिन कौन बताएगा कि वह कहाँ गया

    निष्कासित होते हुए मैंने उसे देखा था

    जयपुर-अधिवेशन जब समेटा जा रहा था

    जो मजूर लगे हुए थे कुर्सी ढोने में

    उन्होंने देखा एक कोने में बैठा है

    अजय अपमानित

    वह उसे छोड़ गए

    कुर्सी को

    सन्नाटा छा गया

    कितना आसान है नाम लिखा लेना

    मरते मनुष्य के बारे में क्या करूँ क्या करूँ मरते मनुष्य का

    अंतरंग परिषद से पूछकर तय करना कितना

    आसान है कितनी दिलचस्प है नेहरू की

    आशंसा पाटिल की भर्त्सना की कथा

    कितनी घुटन के अंदर घुटन के

    अंदर घुटन से कितनी सहज मुक्ति

    कितना आसान है रख लेना अपने पास अपना वोट

    क्योंकि प्रतिद्वंद्वी अयोग्य है

    अत्याचारी हत्या किए जाए जब तक कि स्वर्णधूलि

    स्वर्णशिखर से आकर आत्मा के स्वर्णखंड

    किए जाए

    गोल शब्दकोश में अमोल बोल तुतलाते

    भीमकाय भाषाविद हाँफते डकारते हँकाते

    अँगरेज़ी की अवध्य गाय

    घंटा घनघनाते पुजारी जयजयकार

    सरकार से क़रार ज़ारी हज़ार शब्द रोज़

    क़ैद

    रोज़ रोज़ एक और दर्द एक क्रोध एक बोध

    और नापैद

    कल पैदा करना होगा भूखी पीढ़ी को

    आज जो अनाज पेट भरता है

    लो हम चले यह रक्खे हैं उर्वरक संबंधी

    कुछ विचार

    मुन्न से बोले विनोबा से जैनेंद्र दिल्ली में बहुत बड़ी लपसी

    पकाई गई युद्ध से बदहवास

    जनता के लिए लड़ो या लड़ो

    भारत पाकिस्तान अलग-अलग करो

    फिर मरो कढ़िल कर

    भूल जाओ

    राजनीति

    अध्यापक याद करो किसके आदमी हो तुम

    याद करो विद्यार्थी तुम्हें आदमी से

    एक दर्जा नीचे

    किसका आदमी बनना है—दर्द?

    दर्द, ख़ैराती अस्पताल में डॉक्टर ने कहा वह मेरा काम नहीं

    वह मुसद्दी का है

    वहीं भेजता है मुझे लिखकर इसे अच्छा करो

    जो तुम बीमार हो तुमने उसे ख़ुश नहीं किया होगा

    अब तुम बीमार हो तो उसे ख़ुश करो

    कुछ करो

    उसने कहा लोहिया से लोहिया ने कहा

    कुछ करो

    ख़ुश हुआ वह चला गया अस्पताल में भीड़

    भौचक भीड़ धाँय धाँय

    सौ हज़ार लाख दर्द आठ-दस क्रोध

    तीन चार बंद बाज़ार भय भगदड़ गर्द

    लाल

    छाँह धूप छाँह, नहीं घोड़े बंदूक़

    धुआँ ख़ून ख़त्म चीख़

    कर हम जानते नहीं

    हम क्या बनाते हैं

    जब हम दफ़नाते हैं

    एक हताश लड़के की लाश बार-बार

    एक बेबसी

    थोड़ी-सी मिटती है

    फिर करने लगती है भाँय-भाँय

    समय जो गया है उसके सन्नाटे में राष्ट्रपति

    प्रकटे देते हुए सीख समाचारपत्र में छपी

    दुधमुँही बच्ची खाती हुई भीख

    खिसियाते कुलपति

    मुसद्दीलाल

    घिघियाते उपकुलपति

    एक शब्द कहीं नहीं कि वह लड़का कौन था

    क्या उसके बहनें थीं

    क्या उसने रक्खे थे टीन के बक्से में अपने अजूबे

    वह कौन-कौन से पकवान

    खाता था

    एक शब्द कहीं नहीं एक वह शब्द जो वह खोज

    रहा था जब वह मारा गया।

    सन्नाटा छा गया

    चिट्ठी लिखते-लिखते छुटकी ने पूछा

    'क्या दो बार लिख सकते हैं कि याद

    आती है?'

    ‘एक बार मामी की एक बार मामा की?'

    'नहीं, दोनों बार मामी की'

    ‘लिख सकती हो ज़रूर बेटी', मैंने कहा

    समय गया है।

    दस बरस बाद फिर पदारूढ़ होते ही

    नेतराम, पदमुक्त होते ही न्यायाधीश

    कहता है—समय गया है—

    मौका अच्छा देखकर प्रधानमंत्री

    पिटा हुआ दलपति अख़बारों से

    सुंदर नौजवानों से कहता है गाता बजाता

    हारा हुआ देश।

    समय जो गया है

    मेरे तलुवे से छनकर पाताल में

    वह जानता हूँ मैं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : रघुवीर सहाय संचयिता (पृष्ठ 32)
    • संपादक : कृष्ण कुमार
    • रचनाकार : रघुवीर सहाय
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2003
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

    टिकट ख़रीदिए