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एक दिन लेट

ek din let

अंचित

अंचित

एक दिन लेट

अंचित

और अधिकअंचित

     

    राजकमल चौधरी के लिए 

    रात तनी है झोपड़पट्टी पर 
    सुनसान तिराहे की ड्योढ़ी पर खड़ा कुत्ता 
    भौंक रहा है तकता शून्य, अँधेरा-अँधेरा-अँधेरा 
    घर लौट रहा हूँ फूल बाबू, राजेंद्र सर्जिकल वार्ड 
    के किनारे किनारे भरा हुआ महामारी का भय 
    कम ऑक्सिजन, पेट के निचले हिस्से में दर्द 
    एक सौ तीस रुपए जेब में दिन भर की कमाई 
    एक आधा कविता। 
    कोई हाथ नहीं। दरियापुर की सड़क बदल गई।
    मलय बंबई चले गए। बाक़ी बीट तुम्हारे पीछे पीछे।
    पिंटू होटल बंद हो गया। कोई सस्ता 
    ठर्रा नहीं जहाँ शराब पी जा सके। शाम की नहीं 
    कोई डेट, किसी के सीने की महक नहीं। एक-दूसरे से 
    मिलने का वादा नहीं। यूरी बोरेव की किताब। मोटे फ़्रेम वाला 
    काला चश्मा। गड़ती हुई दाढ़ी। कविता क्या है, जो वर्जित है, 
    निर्वसन- उसी की सुंदरता और जीवन क्या है, मरी हुई मछली की तरह 
    गंधाता महानगर जो छोड़ कर तुम भाग गए। तुम सौ बरस जी 

    जाते फिर भी लेट था फूल बाबू। एक लड़की के सफ़ेद कंधे 
    का स्वाद रहा तालु पर और मृतकों की गंध से ढँके रहे वर्षों 
    के पुरस्कार। मिलना था किसी घाट की सीढ़ी पर, जहाँ तुमने 
    अंग्रेज़ी में मुझको कायर कहा होता।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अंचित
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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