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एक बात बताओ भगवान

ek baat batao bhagwan

प्रमोद कुमार तिवारी

प्रमोद कुमार तिवारी

एक बात बताओ भगवान

प्रमोद कुमार तिवारी

एक बात बताओ हम सबके बाप

तुम्हारा कभी मरने का मूड नहीं होता

सच-सच बताना गुरु!

प्रकाशवर्ष-सी लंबी उम्र खरचते-खरचते

कभी बोर नहीं हुए तुम?

चलो माना कि मर नहीं सकते

पर आत्महत्या की तो सोच सकते हो

बामियान से बग़दाद तक तुम्हारी रचनाओं ने

क्या-क्या गुल नहीं खिलाए

अमाँ यार!

नैतिक ज़िम्मेदारी भी तो कोई चीज़ होती है?

कहीं ऐसा तो नहीं प्रियवर!

ज्यों-ज्यों मरना चाहते हो

तुम्हारी उम्र बढ़ाते चले जाते हैं तुम्हारे दुश्मन

आस्था और अफ़वाहों के भुक्खड़ प्रियवर

तुम्हारा ये भोजन कितना इफ़रात है इन दिनों?

मेरे थुलथुल भगवान!

क्या ग़ज़ब का ‘पी.आर.’ बनाया है

तुम्हारे दुश्मनों ने चैनल वालों से

वैसे इस बुढ़ौती में

इतना अंट-संट खाकर भी

क्यों नहीं ख़राब होता तुम्हारा हाज़मा?

अच्छा मान लो, मेरे परम आत्म,

मरने का मन हो ही गया तुम्हारा,

तो?

फाँसी लगा नहीं सकते!

चाक़ू और सल्फ़ास का विकल्प भी

तुम्हारे किसी काम का नहीं,

क्या करोगे?

किसी ब्लैक होल में कूदोगे?

या अपना बड़ा अंश दे दोगे

चिरक्लांत किसानों को?

या फिर शर्म से बचने के लिए

लिपट जाओगे रस्सी बन कर

आत्मघाती बमों के चारों ओर

श्रद्धेय भगवान,

कितनी भयानक है इसकी कल्पना भी

कि हम मर नहीं सकते

कितने बेचारे हो भाई!

बताओ क्या मदद कर सकता हूँ तुम्हारी?

यार! सुना है

कुछ मात्रा में

मेरे भीतर भी हो तुम,

अब तुम ही बताओ प्यारे

क्या करूँ मैं इसका?

स्रोत :
  • रचनाकार : प्रमोद कुमार तिवारी
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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