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एक और तारे के टूटने के बाद

ek aur tare ke tutne ke baad

आसित आदित्य

आसित आदित्य

एक और तारे के टूटने के बाद

आसित आदित्य

और अधिकआसित आदित्य

    जिसकी नंग-धड़ंग नाख़ूनों के ख़रोचों से सजाई गई लाश

    भोरे-भोर तुम्हें भुतही बसवाड़ी के पास मिली है,

    जिसका भाई उठा है आज

    डूबते चाँद को अपने लहू से रंग देने की क़सम खाते हुए,

    जिसकी माँ दुआरे लगी तुलसी को कोसते हुए

    बदहवास भागी है घटनास्थल की तरफ़―

    वो लड़की मेरी बहन थी, दोस्त थी, माँ थी, प्रेमिका थी

    परंतु अब इंसानियत के क्रीम, पाउडर पुते चेहरे पर

    महज़ एक काला प्रश्नचिन्ह है।

    कहते हैं कि एक रात वो दा विंसी के सपने में आई थी

    और ठीक अगले ही दिन

    उसने मोनालिसा पेंट करना शुरू किया था।

    गेहूँ की सुनहरी बालियों ने बताया मुझे

    कि जब गुज़रती थी नंगे पाँव खेतों की मेड़ से वो

    तब सरसों के फूल शरारत से उसके बालों में अटक जाया करते थें,

    नदी ने बताया कि गुदगुदी होती थी उसे

    जब कभी वो भिगोती थी पाँव अपना।

    वो जब गुनगुनाती थी तो बेसुध हो जाती थी

    आम की फुनगी पर गाती कोयल,

    उसकी खिलखिलाहट सुनकर ये दुनिया जवान हुआ करती थी।

    परंतु अब...जब नहीं है वो―

    बहुत मुमकिन है कि दा विंसी अब भी करे चित्रकारी

    पर मोनालिसा के होंठ अब भूल चुके होंगे मुस्कुराना,

    सरसों फिर सजाएँगे अपने सिर पीला मुकुट

    पर अब वो जेंटलमैन की तरह पेश आएँगे सबसे,

    नदियाँ खो देंगी हँसते-हँसते ख़ुद में सिमट जाने की अदा,

    आम की फुनगी पर गाती कोयल

    अपने बेसुध होने का इंतिज़ार करेगी,

    दुनिया सुस्ताते हुए चलेगी हाथ में लिए लाठी अब

    अब...जब नहीं है वो!

    स्रोत :
    • रचनाकार : आसित आदित्य
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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