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डॉक्टर

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संजय कुंदन

संजय कुंदन

डॉक्टर

संजय कुंदन

और अधिकसंजय कुंदन

    अभी-अभी मेरा नाम

    दर्ज किया है कंपाउंडर ने अपने रजिस्टर में

    अग्रिम फ़ीस चुका देने के बाद

    बैठा हूँ अपनी बारी की प्रतीक्षा में

    कितना आतंक है एक हरे पर्दे का यहाँ

    दीवार पर एक पोस्टर में चुप रहने का

    इशारा करता है एक चेहरा

    वहीं उसके साथ टँगी हैं कई हिदायतें

    स्वस्थ रहने की

    एक साफ़-सुथरे कमरे में

    कुछ डरे हुए लोग बैठे हैं

    एक भयावह चुप्पी है

    लेकिन हम सबके भीतर भारी हलचल है

    सोचता हूँ हमारे रक्त में

    विषाणुओं की ज़बर्दस्त क़वायद जारी है

    हो सकता है किसी के रक्त के भीतर से

    गुम हो गया हो लोहा

    और वह जो झगड़ालू क़िस्म का आदमी

    बैठा है ठीक मेरे बग़ल की बेंच पर

    उसकी आँतें कुतर रहे हों जीवाणु

    और वह बूढ़ा जो थर-थर काँप रहा है

    उसकी हड्डियों में घुसी हुई हो

    कोई शरारती हवा

    और हो सकता है उस औरत की नसों में

    एक भयावह विषाणु से भी ज़्यादा आक्रामक तरीक़े से घूम रहा हो अकेलापन

    जिसे पकड़ पाना आसान नहीं

    किसी भी माइक्रोस्कोप के लिए

    हमें नहीं सुनाई देती

    अपने ही शरीर के पुर्ज़ों की चीख़

    पता नहीं कब किसने कहा था

    कि हमें थोड़ा तेल चाहिए

    थोड़ी हवा चाहिए

    थोड़ी ऊष्मा चाहिए शब्दों की

    और प्यार की

    हो सकता है

    हर रोज़ अपना विरोध

    प्रकट करती हो मेरी पीठ

    जिसे बार-बार झुकाता रहता हूँ

    आँखें रोज़ छटपटाती हों

    उतरने के लिए

    मेरी उन इच्छाओं के आसमान में

    जिन्हें बंद कर रखा है

    वर्षों से अलमारी में

    उँगलियाँ कसमसाती हों

    कि निकलें बाहर मेरे हस्ताक्षर के फंदे से

    रोज़-रोज़ रचे जाते शब्दों के मकड़जाल से

    पता नहीं आँतें झेल रही हों

    कौन-सा आघात

    और फेफड़ों का कौन-सा टूटा हो स्वप्न

    लेकिन यह सब कुछ विस्तार से

    नहीं बताएगा डॉक्टर

    वह सिर्फ़ बताएगा

    कि शरीर का तापमान कितना ज़्यादा है

    और रक्त की चाल कितनी धीमी है

    उसकी रुचि होगी सिर्फ़ दवाओं में

    जिन्हें लिखता हुआ वह

    बड़बड़ाने की शैली में देगा कुछ हिदायतें

    वह इस तरह बात करेगा

    जैसे मैंने ही किया हो हवा को गंदा

    मैंने ही मिलाया हो पानी में ज़हर

    मैने जानबूझकर न्यौता है दुख को

    जानबूझकर ही क़ैद किया है इच्छाओं को

    हमारी उसकी मुलाक़ात में

    इतना वक़्त भी नहीं होगा

    कि बता सकें कुछ भी उसे

    अपने बारे में

    यह भी नहीं कह पाऊँगा

    कि अपनी बारी की प्रतीक्षा करते हुए

    मैं खिड़की से बाहर

    उसकी कार की ओर देख रहा था

    और उसके बँगले की क़ीमत का

    अनुमान करता हुआ

    थोड़ी ईर्ष्या से भर उठा था

    मैं उसकी केबिन से निकल

    तेज़ी से भागूँगा

    दवा की दुकान की तरफ़

    उसका चेहरा भूलने की कोशिश

    करता हुआ

    स्रोत :
    • रचनाकार : संजय कुंदन
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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