डिकली ग्रामा
Dikli gram
यदि तुम्हें बहुत बुरा लगता है
तो भई तुम चले जाओ।
मुझे तो भला लगता है
पावन-पवित्र चेहरों से मज़ाक़ करना
और उनकी चोटी की परछाई से समय नापना
यदि तुम पंचम से पटाक नीचे नहीं गिर सकती
तो भई तुम जाओ।
मुझे तो भाते हैं चीज़ों के अलग-अलग नाम रखने
और फिर नामों को बदले नामों से बुलाना
यदि तुम्हें गुलदस्ते को गुलदस्ता ही कहना है
तो तुम जाओ।
मुझे तो अच्छा लगता है दोस्तों की जेबों से
विजिटिंग कार्ड चुराना और उनके पीछे लिखना
मैं घर पर नहीं हूँ।
यदि तुम दहलीज़ पर दीया बनी
बैठी रहोगी तो तुम चली जाओ
यदि तुम्हें बहुत बुरा लगता है न,
तो तुम जाओ।
- पुस्तक : बीसवीं सदी का पंजाबी काव्य (पृष्ठ 262)
- संपादक : सुतिंदर सिंह नूर
- रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक फूलचंद मानव, योगेश्वर कौर
- प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
- संस्करण : 2014
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