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धुँधलापन

dhundhlapan

रमाशंकर सिंह

रमाशंकर सिंह

धुँधलापन

रमाशंकर सिंह

और अधिकरमाशंकर सिंह

     

    आँख थोड़ी ख़राब है
    दिखती है हर चीज़ धुँधली
    शहर धुँधला दिखता है
    बिजली के तार पर बैठी चिड़िया दिखती है धुँधली
    शरद-पूर्णिमा का चाँद दिखता है धुँधला
    हड़बड़ी में और ध्यान से देखने पर भी
    आदमी थोड़ा कम आदमी दिखता है
    उसका क़द
    जी-हुज़ूरी में घिस गया है शायद
    आँखों का ही दोष था
    कि गिरगिट मुझे कहानीकार दिखा
    पिछले शहर में वह अपनी प्रेमिका
    और उससे भी पिछले क़स्बे में अपनी पत्नी
    गाँव में माँ को छोड़कर भाग आया था
    जब वह लिख रहा था गांधी की जीवनी
    तब पुलिस उसे ढूँढ़ रही थी
    मानबहादुर सिंह1 की हत्या के आरोप में
    आँखे इतनी ख़राब हो गई हैं मेरी
    कि हत्यारा दिखने लगा है महात्मा
    नदी का पेट काटकर बालू निकालने वाला ठेकेदार
    गा रहा है नदी-सूक्त
    मुझे लगता है कि मेरी आँख ख़राब है
    मैं भागकर डॉक्टर के पास जाता हूँ
    वह आगे-पीछे चक्कर लगाता है
    जैसे किसी पेड़ को काटने से पहले लकड़हारा
    तस्दीक़ करता है
    पेड़ की गोलाई
    उसकी लंबाई
    उसका वज़न
    उसके गिरने की दिशा
    डॉक्टर एक सर्द आवाज़ में कहता है
    घर लौट जाओ, बंधु
    तुम्हारा दिमाग ख़राब है
    आँखें ठीक हैं।

    स्रोत :
    • रचनाकार : रमाशंकर सिंह
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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