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आकांक्षा

रमानन्द रेणु

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और अधिकरमानन्द रेणु

    विजुरी केर करेन्ट सन

    उड़ि रहल चुमकी परबा, उज्जर

    काँसाक परबा कस्कुट केर पाँखि

    टीनक आकाशमे राङा जौँ टीपल

    तामा केर आँचर पर

    निहुरल: कौड़ी केर गाछ।

    चुम्मा चुम्मा

    डारि-डारिक फूलक

    सुरभित दुकूलक...आर सभ निरर्थक!

    निरर्थकः जीवन फँसब

    कोनो डारिक झोंझमे

    छीटल-छानल ओझराहटिक जाल कत?

    शक्तिः निरर्थक नहि शक्ति—

    ओझरायब सरल

    सोझरायब सरल

    परबाक पाँखिक फटफटाहटिकेँ

    की बान्हि सकत मकड़ा केर जाल?

    ताग सभटा काँच

    काँच गाछ

    जिनगी समुच्चा। पाकि रहल बॉस...

    उड़ि रहल चुमकी परबा

    एक दोसरकेँ देखैत।

    स्रोत :
    • पुस्तक : मैथिलीक नव कविता (पृष्ठ 96)
    • संपादक : रामकृष्ण झा ‘किसुन’
    • रचनाकार : रमानन्द रेणु
    • प्रकाशन : सांस्कृतिक विभाग, बिहार
    • संस्करण : 1971

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