देर से आई हुई बरसात
der se i hui barsat
देर से आई हुई बरसात को हथेलियाँ पर झेलें,
पलकों पर हौले सहेजें, मस्तक के पसीने में मिला
सिर में सींचें, और उसकी आर्द्रता पीठ पर धीरे-धीरे
गलने दें,
सूखे पड़े हुए होंठ खोलकर
उसे ऊपर ही ऊपर चूमें, पी लें,
देर से आई हुई बरसात को
उपालंभ न दें, और न ढूँढ़े उसके दोष
मसलन उसका बहक जाना, झूठे वायदे करना, बहाने बताना
नियत समय पर चूक जाना—
और न बतलाएँ उसे अपनी शिकायतें :
जैसे राह देखना, अधीर हो जाना, मन में भाँति-भाँति
की शंक-कुशंकाएँ लाना, घबराना, ख़ुद से ही बुदबुदाना,
उसे तो, क्षितिज की बाँहें पसार कर,
लाड़ प्यार से छाती से चिपकाएँ,
और रंगीन पट बिछाकर, उसके साथ,
गोटियों का मज़ेदार खेल खेलें।
- पुस्तक : प्रतिनिधि संकलन कविता मराठी (पृष्ठ 12)
- रचनाकार : आ. रा. देशपांडे अनिल
- प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन
- संस्करण : 1965
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