फ़र्ज़ और मोहब्बत के तहत
वह मुझसे मिलने आया
बैठकों मुलाक़ातों औपचारिक व्यस्तताओं के बीच से
ग़ोता लगाकर उसका इस तरह आना
उसके लिए राहत थी और मेरे लिए इज़्ज़त
जैसा कि पड़ोसी समझते थे
वह कहने लगा
यहाँ आकर ताज़गी मिल जाती है
दीवान पर पड़ी कविता की किताबों को उलटते हुए
वह मुझे एक बेहद दयनीय मेमना लगा
मैंने उससे सवाल किया
माँ, बीवी और बच्चों के बारे में
जिसे अनसुना कर वह राष्ट्रपति के पक्ष में
बोलने लगा
तब मैंने उसे टोक कर कहा
इस बार भी तुम घुस नहीं पाए मंत्रिमंडल में
तो वह बताने लगा उसे कोई मलाल नहीं है इसका
क्योंकि मुख्यमंत्री की नब्ज़ वह
पहचानता है ठीक से
फिर वह हमारे एक मित्र के बारे में
कहने लगा—वह भाट है सरकार क
और उसका काम ही है
कमज़ोरियों और गड्ढों पर सुंदर पर्दा डालना
मैंने पूछा—घर कब जाओगे
तो वह बताने लगा
देश के लिए मरने-खपने वालों का
कोई घर नहीं होता
घर के लिए कोई फ़ुर्सत नहीं होती
और फिर वह कटाक्ष पर उतर आया
ठीक सत्ता-पक्ष के विधायक की तरह कहते हुए
बैठे रहो तुम अपने घर में
तुम क्या जानो
देश पर और हम पर गुज़र रही है क्या
फिर घड़ी देखकर हड़बड़ी में उतरते हुए
उसने कहा
सर्किट हॉउस में रास्ता देख रहे होंगे मुलाक़ाती
रात को ज़रूर आना वहीं
गोवा की ताड़ी का इंतज़ाम है बढ़िया
मैं हँसा—
हाँ, आना ही पड़ेगा
तभी जान पाऊँगा
देश, प्रदेश और तुम पर गुज़रती वारदातों का
असली कच्चा चिट्ठा।
- पुस्तक : जहाँ थोड़ा-सा सूर्योदय होगा (पृष्ठ 115)
- रचनाकार : चंद्रकांत देवताले
- प्रकाशन : संवाद प्रकाशन
- संस्करण : 2008
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