एक
जले हुए होंठों या आँखों में जल की तरह व्याप्त होता है शोक। पहले भी था, मृतक के जीवन में आने के दिन की प्रथम रात्रि से उसके अनंत वियोग का शोक जल की तरह भीतर-भीतर रिसने लगता है। पाइपलाइन टूटने पर जैसे दीवाल बदरंग हो जाती है। इसी भीतरी रिसाव को अवसाद से मुक्ति पाने के लिए हम प्रेम, अनुराग आदि कह देते है। शोक इसलिए दारुण नहीं होता क्योंकि इसे सहा नहीं जा सकता, बल्कि यह तो शांति प्रदान करने वाला है। भय की समाप्ति शोक में ही तो है, किंतु शोक इसलिए असहनीय है क्योंकि यह संसार के समक्ष शोकाकुल को एकदम से नग्न कर देता है।
घर के बाहर रखे हुए शव के सम्मुख रोना अनेक नीलरात्रियों, मेघमय दिनों के प्रेम, गुप्त वार्ताओं को पुष्प की तरह सबके सामने उजागर कर देता है। जिससे प्रेम था, जिसके सामने शरीर या हृदय या हृदय का कोई भाग या केवल गर्भ या मात्र गोपनीयता कॉपी ही निर्वसन रहती थी, वह अब निष्प्राण बाँस से बँधा पड़ा हुआ है और संसार हृदय के अंतरतम भाग को उलट कर देखता है—किसी नाट्य-प्रस्तुति की तरह।
शोक मृत्यु की रात्रि नहीं, दूसरे दिन नहीं, बहुत बाद में प्रकट होता है—जब शोक करने वाले को पूर्णत: विश्वास हो जाए कि मृतक अब नहीं लौटेगा और उसे शोक अब करना बंद कर देना चाहिए।
दो
मृतक के लिए रोने की ध्वनि से अधिक मधुर कुछ भी नहीं इसलिए तुम ज़ोर-ज़ोर से रोओ। जो लोग तुम्हें घेरकर खड़े है, उन्हें संबोधित करके कुछ मत कहो, आज केवल मृतक से संवाद करो—उसके निष्प्राण हाथों से अपनी आँखें ढाँक लो, उसके पैरों के अविचल अँगूठों पर अपने आँसू गिरने दो तुम। खाएगा नहीं कुछ वह आज इसलिए उसे पानी पिलाओ। ठंडा पानी पिलाओ तो क्या हुआ कि वह बीती रात बर्फ़ की सिला पर बिताकर आया है; वह तुम्हारे हाथ से ठंडा पानी पीना चाहता है। ध्यान रखो कि पानी साफ़ हो, गिलास में कण, कीड़े आदि देखो पिलाने से पूर्व। यह भी ध्यान रखो कि पिलाने के बाद गिलास उचित स्थान पर रख दिया जाए, यह न हो कि शोक में तुम गिलास यहाँ-वहाँ रख दो और मृतक को ले जाने की हड़बड़ी में गिलास गिर जाए पानी फैल जाए। अंतिम यात्रा से पूर्व ऐसा अशुभ संकेत हो।
मृतक से क्षमा माँगो कि तुम उसके प्रिय रंग के आँसुओं में नहीं रो सकते, क्योंकि शरीर संरचना में आँसू पारदर्शी है।
- रचनाकार : अम्बर पांडेय
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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