आज जब वह जा रही है
aaj jab wo ja rahi hai
वह जब थी
तो कुछ इस तरह थी
जैसे कोई भी बीमार बुढ़िया होती है
शहर के किसी भी घर में
अपने दिन गिनती
वह जब थी
उससे इस शहर को
और इस घर को
नहीं था कोई सरोकार
कि अपनी पीड़ाओं और संघर्षों के साथ
वह कितनी अकेली थी
कहाँ शामिल था ख़ुद मैं भी
उस तरह से
उसके होने में
जिस तरह से कि इस अंतिम यात्रा में हूँ?
आज जब जा रही है वह
तो रो रहा है घर
स्तब्ध है शहर
खड़ा है कोई हाथ जोड़ कर
और कोई सरक गया है दुकान मे मुँह फेर कर
आज जब वह जा रही है
भीड़ ने रास्ता दे दिया है उसे सहम कर
भारी-भरकम गाड़ियाँ गुर्राना छोड़
दो पल के लिए एक तरफ़ हो गई हैं
चौराहे पर उस वर्दीधारी सिपाही ने भी
अदब से सलाम ठोक दिया है!
आज जब वह जा रही है
तो लगने लगा है सहसा
मुझे
इस घर को
और पूरे शहर को
कि वह थी...
वह थी
और अब नहीं रही!
माँ की अंतिम यात्रा से लौटने पर
- रचनाकार : अजेय
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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