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दर-ब-दर

dar ba dar

सत्यम तिवारी

सत्यम तिवारी

दर-ब-दर

सत्यम तिवारी

और अधिकसत्यम तिवारी

    नकारापन और आवारापन के

    बीच की ख़ाली जगह

    जहाँ अभी भी तुम्हारा नाम

    नारों की तरह पुकारा जाए

    एक बिल्कुल चूका हुआ शख़्स

    पर चुका नहीं

    एक आधा झुका हुआ भी

    पर बुझा नहीं

    वह तुम्हारी हँसी में बसता

    अगर उसे घर कह सकता

    उसे भी बार-बार आकर्षित करता

    जुलूस की तरह

    तुम्हारे दिल से निकल जाने का ख़याल

    तुमने उठाकर जिसे रख दिया

    अपनी जगह पर

    और सोचा उसका तुम्हारी तरह सोचना

    वह क्या करे कि आता हुआ स्वप्न है

    तुम क्या करो कि हो टलती हुई दुर्घटना

    जिसे निकाला जाए

    हाथ खींचकर कविता से बाहर

    जैसे फ़ैमिली फ़ोटो से

    कट जाती है कोई तस्वीर

    जब लंबी फैल जाए उसकी कविता

    जैसे लंबा फैल जाता है उसका दुख

    समेटने में लगे जाने कितना वक़्त

    तुम जाने के लिए बहाना तलाशो

    तो वह बन जाए तुम्हारा खिलौना

    तुम जभी चलना सीखो

    वह थामे धरती तुम्हारे लिए

    जब वह हो तुम्हारा आसमान

    जले, बरसे भी

    उसने खींचकर फैलानी चाही थी रस्सी

    झुकता ही गया है थोड़ा और

    थोड़ा और वज़न ढोने के फेर में जीवन

    स्रोत :
    • रचनाकार : सत्यम तिवारी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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