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दामिनी का दर्द

damini ka dard

पद्मजा शर्मा

पद्मजा शर्मा

दामिनी का दर्द

पद्मजा शर्मा

और अधिकपद्मजा शर्मा

    जाने उसने कितना दर्द सहा होगा

    जब उसके साथ वह सब हुआ होगा

    इतनी कम उम्र थी उसकी

    क्या जाने

    कभी ख़ुशियों ने

    उसका दामन

    सितारों से भरा होगा

    जाने उसने कितना दर्द...

    सुनकर

    उसकी दास्ताँ

    हर दिल में

    दर्द का इक दरिया

    ज़रूर बहा होगा

    जाने उसने कितना दर्द...

    जब तक हम ज़िंदा हैं

    तब तक यह घाव

    हमारी आत्माओं में

    हरा होगा

    जाने उसने कितना दर्द...

    रोटी का पहला कौर

    अब भी उसकी माँ के आगे

    ज्यों का त्यों

    धरा होगा

    जाने उसने कितना दर्द...

    उसके भी कुछ सपने होंगे

    जाने किस तरह

    तेरह दिनों तक

    पल-पल

    हर सपना

    मरा होगा

    जाने उसने कितना दर्द...

    बेटी रहे ज़िंदा

    इसके लिए

    माँ-पिता

    कितने रोए होंगे

    क्या-क्या करा होगा

    जाने उसने कितना दर्द...

    ज़िंदगी से जंग लड़कर

    वह जा रही थी

    तब उसका दिल

    कितने अरमानों

    अधूरे ख़्वाबों से

    भरा होगा

    जाने उसने कितना दर्द...

    कोई देवता

    उसे बचाने नहीं आया

    यह हो नहीं सकता

    कि उसने किसी को

    पुकारा होगा

    जाने उसने कितना दर्द...

    देवताओं का

    वक़्त बीत चुका

    मैंने उन्हें गुस्से में

    क्या-क्या कहा होगा

    पर फिर भी उन ढीठों ने कहाँ सुना होगा

    जाने उसने कितना दर्द...

    अगर वे हैं भी

    तो अंधे-बहरे हो चुके हैं

    न्याय विवेक और दिल भी

    खो चुके हैं

    उनका वास्ता

    औरत के दर्द से कब कहाँ रहा होगा

    जाने उसने कितना दर्द...

    स्रोत :
    • रचनाकार : पद्मजा शर्मा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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