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दफ़्तर

daftar

मेरे घर से दफ़्तर की दूरी

अलग-अलग जगह रहने वाले मेरे सहकर्मियों के लगभग बराबर

एक तरफ़ से मापो तो सोलह घंटे हैं

दूसरी तरफ़ से आठ घंटे हैं

रोज़-रोज़ ज़ंजीर गिराओ तो कुछ समय,

जो कि दूरी का भी एक पैमाना है

इधर से उधर सरक जाता है

इस तरफ़ से मापो तो भागा-भागी है, काँव-कीच है

एसाइनमेंट, कॉन्ट्रैक्ट सैलरी, एबसेंट आदि की सहूलियतें हैं

उस तरफ़ से मापो तो थोड़ी-सी नींद, थोड़ी-सी प्यास है

थोड़ी-सी छुट्टियों, रविवार, बाज़ार, इंडिया गेट, लोटस टेंपल, बिड़ला मंदिर आदि के पड़ाव हैं

इन सारी चीज़ों का अर्थ राजधानी के दफ़्तर के निमित्त ज़िंदगी में

लगभग एक ही है

हर चीज़ में थोड़ी सी रेत है, चप-चप पसीना है, बजता हुआ हॉर्न है

इस दूरी को जो रेल मापती है उसमें ख़ूब रेलमपेल है

इन सब चीज़ों को जो घड़ी नचाती है

उसमें चाँद, आकाश, प्रेम, नफ़रत, उमंग, हसरत, सपना सेकंड के पड़ाव भर हैं

यह साज़िशों, चालाक समझौतों, कनखियों और सामाजिक होने के आवरण में

अकेला पड़ जाने की हाहा… हीही… हूहू… में व्यक्त समय है

इस घड़ी की परिधि घिसे हुए रूटीन की दूरी भर है

समाज की सारी घटनाएँ प्रायोजित हैं जल्दी विस्मृत होती हैं अच्छा है… अच्छा है…

दफ़्तर और घर के बीच

आ-जा रही ज़िंदगी में कोई दोस्त दुश्मन है

सब सिर्फ़ मौक़े का खेल है

यों ही नहीं बदल जाता है रोज़ राष्ट्रीय राजनीति में सांप्रदायिकता का मुहावरा

ये सारे लोग लगभग एक जैसे जो चारों ओर फैल गए

इनकी ज़िंदगी में

थोड़ा-सा क़र्ज़, थोड़ा-सा बैंक-बैलेंस

थोड़ा-सा मंजन घिसा हुआ ब्रश है

बग़ैर साबुन की साफ़ शफ़्फ़ाफ़ कमीज़ है पैंट है टाई है

आटो मेट्रो लोकल ट्रेन और उनका एक घिसा हुआ पास है

सुबह का दस है, शाम का दस है

बाक़ी सब धूल है

जो पैर से उड़ कर सिर पर

सिर से उड़ कर पैर पर बैठती रहती है

और पूरा शरीर उस उड़ान की बीट से पटा रहता है

महँगी कार में चलने वाले अपनी जानें यह कविता

दूरी के बारे में सोचने वालों की कविता है

जैसे मेरी सुबह दफ़्तर जाने के लिए होती है

और शाम दफ़्तर से घर लौट आने के लिए

दोपहर दफ़्तर के लंच आवर के लिए

रात में मैं दफ़्तर जाने के लिए आराम करता हूँ सोता हूँ

उसके पहले टी.वी. देखता हूँ

बीवी को गले लगाता हूँ

उसके हाथों से बनाया खाना खाकर

उसकी बाँहों में जल्दी सो लेता हूँ

कि सुबह जब हो

मेरे दफ़्तर जाने में तनिक देर नहीं हो

तीन दिन की थोड़ी-थोड़ी देर पूरे एक दिन का

भरपूर काम करने के बावजूद आकस्मिक अवकाश होती है

नींद में मैं दफ़्तर के सपने देखता हूँ

सपने में दफ़्तर के सहकर्मियों के षड्यंत्र सूँघता हूँ

जिससे बहुत तेज़ बदबू आती है

इस बदबू में मुझे धीरे-धीरे बहुत मज़ा आता है

मैं नींद में बड़बड़ाता हूँ

बॉस को चूतिया कह कर चिल्लाता हूँ

नींद में हाथ पैर भाँज-भाँज कर

बॉस की, कलीग की, सीनियर की, जूनियर की

दफ़्तर के कोने में काजल लगाए बैठी उस लड़की की ऐसी-तैसी कर देता हूँ

इस तरह चरम-सुख पाता हूँ मैं

मेरे इस करतब को देखकर

नहीं जानता बग़ल में जग गई पत्नी पर क्या गुज़रती है

जैसा कि उसे मैं जितना जानता हूँ हतप्रभ होती होगी

कहती होगी बड़े वैसे हैं ये

सुबह उठ कर पत्नी चाय बनाती है मेरी नींद के बारे में पूछती है

मैं अनसुना करता हूँ

और लगा रहता हूँ युद्ध की तैयारी में एक औसत आदमी जैसा लड़ता है युद्ध

ब्रश, शेविंग, बूट पालिश, स्नान-ध्यान, पूजा-पाठ सब जल्दी में

इस बीच कभी भूल जाता हूँ फूल को पानी देना

किसी बच्चे को दो झापड़ मारता हूँ

पिता कहते हैं जैसे-जैसे मुझे समझदार होना चाहिए मैं चिड़चिड़ा होता जा रहा हूँ

दफ़्तर जाकर काम निपटाता हूँ

इसको डाँटता हूँ उससे डाँट खाता हूँ

दफ़्तर में ढेर सारे गड्ढे

इसमें गिरता हूँ, उसे फाँदता हूँ

यहाँ डूबता हूँ वहाँ निकलता हूँ

कुर्सी तोड़ता हूँ कान खोदता हूँ

तीर मारता हूँ अपनी पीठ ठोकता हूँ

अख़बार पढ़ता हूँ देश में तरह-तरह के फ़ैसले हो रहे हैं

प्रधानमंत्री, फलाँ मंत्री इस देश जा रहे हैं उस देश जा रहे हैं

देश में यहाँ-वहाँ बम फूट रहे हैं

इसमें मुसलमानों के नाम आते हैं

और एक दिन कहीं किसी साध्वी के हाथ होने के सबूत भी मिलते हैं

तो तमाम राष्ट्रवादी उसकी संतई और विद्वता के क़िस्से बताने लगते हैं

उसे चुनाव लड़ाने लगते हैं

किसी प्रांत में कुछ लोग ईसाइयों की सफ़ाई में लग जाते हैं

हमारे दफ़्तर में इससे उत्तेजना फैलती है

इस आधार पर फ़ाइलों को लेकर भी साज़िशें होने लगती हैं

फिर कहा जाता है देश के कर्णधार ही सब पगले और भ्रष्ट हैं

तो हम जो कुछ कर रहे हैं कौन ग़लत कर रहे हैं

अलग-अलग गुट बन जाते हैं

और अपने गुट के कर्णधार को कुछ कहे जाने पर जैसे सबकी फटने लगती है

ग़ुस्सा करने लगते हैं लोग गाली-गलौज

प्रमोशन करने-कराने रोकने का यह एक आधार बन जाता है… बनने लगता है

हमने अपने-अपने घरों में मनोरंजन के लिए टी.वी. लगा रखा है

यह कम ज़िम्मेदार नहीं है हमारे द्रोहपूर्ण ज्ञान के विकास में

यहीं से हम नई-नई ग़ालियाँ, डिस्को, गुस्सा, प्यार करना और अवैध संबंध बनाना

सीख आते हैं और दफ़्तर में उसकी आज़माइश करना चाहते हैं

वहाँ एक से एक अच्छी चीज़ें हैं

नचबलिए है, लाफ़्टर शो हैं, टैलेंट हंट हैं, क्रिकेट मैच, बिग बॉस और

एकता कपूर के धारावाहिक

पर मैं सोचता हूँ इससे अपन का क्या

दफ़्तर हो तो पैसा मिले

पैसा मिले तो केबल कट जाए

फिर ये साले रहें रहें

भाड़ में जाए सब कुछ

गिरे शेयर बाज़ार लुढ़के रुपया

सुनते हैं गिरता है रुपया तो अपन की ग़रीबी बढ़ती है—बढ़ती होगी

अपन का क्या अपन कर ही क्या सकते हैं

बस सलामत रहे नौकरी

बॉस थोड़ा बदतमीज़ है

कलीग साले धूर्त हैं

कोई नहीं,

कहाँ जाइएगा सब जगह यही है

अपन ही कौन कम हैं

राजधानी में इधर बहुत बम विस्फोट हो रहे हैं

क्या पता किसी दिन अपन भी किसी ट्रेन के इंतज़ार में ही निपट जाएँ

माँ रोज़ सचेत करती है

बेटा, ज़माना बहुत बुरा हो गया है

ख़ाक बुरा हो गया है

हो गया है तो हो गया है

अपन को कोई डर नहीं

मुझे तो दफ़्तर जाते डर लगता है कोई उमंग

चिंता ख़ुशी

यही है कि आने-जाने वाली ट्रेन लेट हो

तो थोड़ी बेसब्री जगती है

सरकार पर थोड़ा ग़ुस्सा आता है

बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर प्यार उमड़ आता है

वैसे वे कौन-सी दूध की धुली हैं

आदमी तो सब जगह एक से...

स्रोत :
  • रचनाकार : हरे प्रकाश उपाध्याय
  • प्रकाशन : हिंदी समय

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