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ईंटें

inten

नरेश सक्सेना

और अधिकनरेश सक्सेना

    तपने के बाद वे भट्टे की समाधि से निकलीं

    और एक वास्तुविद के स्वप्न में

    विलीन हो गईं

    घर एक ईंटों भरी अवधारणा है

    जी बिल्कुल ठीक सुना आपने

    मकान नहीं घर

    जैसे घर में कोई छोटा-बड़ा नहीं होता

    सभी लोग करते हैं सब तरह के काम

    एकदम ईंटों की तरह

    जो होती हैं एक दूसरे की पर्यायवाची

    एक दूसरे की बिल्कुल जुड़वाँ

    वैसे ईंटें मेरे पाठ्यक्रम में थीं

    लेकिन जब वे घर बनाने आईं

    तो विषय से ही बाहर था उनका हर दृश्य

    ईंटों के चट्टे की छाया में

    तीन ईंटें थीं एक मज़दूरनी का चूल्हा

    दो उसके बच्चे की खुड्डी बनी थीं

    एक उसके थके हुए सिर के नीचे लगी थी

    बाद में जो लगने से बच गईं

    उनको तो करने थे और बड़े काम

    बक्सों-अलमारियों को सीलन से बचाया था

    टूटे हुए पायों को थामना था

    ऊँची जगहों तक पहुँचने के लिए

    बच्चों का क़द

    ईंटों को ही बढ़ाना था

    हम चाहते हैं ईंटें हों सुडौल

    सतह समतल हो

    धार-कोर पैनी

    नाप और वज़न में खरी और पूरी तरह तपी हुई

    रंगत हो सुर्ख़

    बोली में धातुओं की खनक

    ऐसी कि सात ईंटें चुन लें तो जलतरंग बजने लगे

    फिर दाम भी हों मुनासिब

    इतना सब हो अगर

    तब क्या ईंटों का भी बनता है

    कुछ हक़

    कि वे हमसे कुछ चाहें

    याद आई वह दीवार

    जिसके साये तले रहते थे मीर

    वह जिसके पीछे से गोलियाँ चलाईं अशफ़ाक़ ने

    वही जिस पर बब्बू और रानी ने किया अपने प्रेम का इज़हार

    और वह जला हुआ खंडहर

    जो अब सिर्फ़ बारिशों का करता है इतंज़ार

    ईंटे भला क्या चाह सकती हैं

    ईंटें शायद चाहें कि वे बनाएँ जो घर

    उसे जाना जाए थोड़े-से प्रेम थोड़े-से त्याग और

    थोड़े-से साहस के लिए

    ईंटें अगर सचमुच यह चाहें?

    उस दिन से ईंटों से आँख मिला पाना

    मेरे लिए सहज नहीं रह गया

    दोस्तो, अगर ऐसा लगे

    कि कविता से बाहर नहीं ऐसा संभव

    तो एक बात पूछता हूँ

    अगर लखनऊ की ईंटें बनी हैं

    लखनऊ की मिट्टी से

    तो लखनऊ के लोग क्या किसी और मिट्टी से बने हैं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : समुद्र पर हो रही है बारिश (पृष्ठ 19)
    • रचनाकार : नरेश सक्सेना
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2001

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