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हॉकी खेलती लड़कियाँ

haॉki khelti laDkiyan

कात्यायनी

कात्यायनी

हॉकी खेलती लड़कियाँ

कात्यायनी

आज शुक्रवार का दिन है

और इस छोटे से शहर की ये लड़कियाँ

खेल रही हैं हॉकी।

ख़ुश हैं लड़कियाँ

फ़िलहाल

खेल रही हैं हॉकी।

कोई डर नहीं।

बॉल के साथ दौड़ती हुई

हाथों में साधे स्टिक

वे हरी घास पर तैरती हैं,

चूल्हे की आँच से

मूसल की धमक से

दौड़ती हुई

बहुत

दूर

जाती हैं।

वहाँ इंतज़ार कर रहे हैं

उन्हें देखने आए हुए वर पक्ष के लोग,

वहाँ अम्मा बैठी राह तकती हैं

कि बेटियाँ आएँ तो

संतोषी माता की कथा सुनाएँ

और

वे

अपना व्रत तोड़ें,

वहाँ बाबूजी प्रतीक्षा कर रहे हैं

दफ़्तर से लौटकर

पकौड़ी और चाय की,

वहाँ भाई घूम-घूमकर लौट रहा है

चौराहे से

जहाँ खड़े हैं मुहल्ले के शोहदे

रोज़ की तरह

और इधर

लड़कियाँ हैं

कि हॉकी

खेल रही हैं।

लड़कियाँ

पेनाल्टी कॉर्नर मार रही हैं

लड़कियाँ पास दे रही हैं

लड़कियाँ ‘गोऽल-गोऽल’ चिल्लाती हुई

बीच मैदान की ओर भाग रही हैं

लड़कियाँ एक-दूसरे पर ढह रही हैं

एक-दूसरे को चूम रही हैं

और

हँस रही हैं।

लड़कियाँ फ़ाउल खेल रही हैं

लड़कियों को चेतावनी दी जा रही है

और वे हँस रही हैं

कि

यह ज़िंदगी नहीं है

—इस बात से निश्चिंत हैं लड़कियाँ

हँस रही हैं

रेफ़री की चेतावनी पर।

लड़कियाँ बारिश के बाद की नम घास पर

फिसल रही हैं

और गिर रही हैं

और उठ रही हैं

वे लहरा रही हैं

चमक रही हैं

और मैदान के अलग-अलग कोनों में

रह-रहकर उमड़-घुमड़ रही हैं।

वे चीख़ रही हैं, सीटी मार रही हैं

और बिना रुके

भाग रही हैं

एक छोर से दूसरे छोर तक।

उनकी पुष्ट टाँगें चमक रही हैं

नृत्य की लयबद्ध गति के साथ

और लड़कियाँ हैं कि

निर्द्वंद्व

निश्चिंत हैं

बिना यह सोचे कि

मुँहदिखाई की रस्म करते समय

सास क्या सोचेगी।

इसी तरह खेलती रहती लड़कियाँ

निस्संकोच-निर्भीक

दौड़ती-भागती और हँसती रहतीं

इसी तरह

और हम देखते रहते उन्हें।

पर शाम है कि होगी ही

रेफ़री है कि बाज़ नहीं आएगा

सीटी बजाने से

और स्टिक लटकाए हाथों में

एक भीषण जंग से निपटने की

तैयारी करती लड़कियाँ

लौटेंगी घर।

अगर ऐसा हो तो

समय रुक जाएगा

इंद्र-मरुत-वरुण सब कुपित हो जाएँगे

वज्रपात हो जाएगा, चक्रवात जाएगा

घर पर बैठे

देखने आए वर-पक्ष के लोग

पैर पटकते चले जाएँगे

बाबूजी घुस आएँगे गरजते हुए मैदान में

भाई दौड़ता हुआ आएगा

और झोंटा पकड़कर

घसीट ले जाएगा

अम्मा कोसेगी—

‘किस घड़ी में पैदा किया था

ऐसी कुलच्छनी बेटी!’

बाबूजी चीख़ेंगे—‘सब तुम्हारा बिगाड़ा हुआ है’

घर

फिर

एक अँधेरे में

डूब जाएगा

सब सो जाएँगे

लड़कियाँ घूरेंगी अँधेरे में

खटिया पर चित लेटी हुई

अम्मा की लंबी साँसें सुनती

इंतज़ार करती हुई

कि अभी वे आकर उनका सिर सहलाएँगी

सो जाएँगी लड़कियाँ

और

सपने में

दौड़ती हुई

बॉल के पीछे

स्टिक को साधे हुए हाथों में

पृथ्वी के

छोर पर पहुँच जाएँगी

और ‘गोऽल-गोऽल’ चिल्लाती हुई

एक-दूसरे को चूमती हुई

लिपटकर

धरती पर

गिर जाएँगी!

स्रोत :
  • पुस्तक : कवि ने कहा (पृष्ठ 17)
  • रचनाकार : कात्यायनी
  • प्रकाशन : किताबघर प्रकाशन
  • संस्करण : 2012

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