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उद्देश्य

uddeshy

अनुवाद : हरिभजन सिंह

संत सिंह सेखों

और अधिकसंत सिंह सेखों

    भारतीय सभ्यता का उद्देश्य सर्वोत्तम, श्रेष्ठ:

    माता का पुत्र भक्त हो, अथवा शूरवीर

    अथवा दाता, विश्व-विख्यात विक्रमादित्य के समान

    अन्यथा उसका जन्म व्यर्थ है, रूप का अपव्यय है।

    शूरवीर कर्म-मार्ग का विशिष्ट यात्री है

    विषम यह मार्ग है, कृपाण की धार से भी तीक्ष्ण

    बंधनों को काटना कृपाण के एक ही वार में

    मदमत्त गज के समान भाग्य से टक्कर लेना।

    कौन-से हैं ये बंधन? प्रथम—लालसा, संसार के

    नाना पदार्थों की, मुद्रा और द्रव्य का पाश

    शरीर की सुविधा-सुमीता, उच्च प्रासाद अथवा नीची मड़ैया।

    द्वितीय—मोह-पाश, जननी, पिता, पुत्र, पुत्री

    बंधु, परिजन, मैत्री का चतुर्दिक प्रसार

    जिसमें अर्जुन-सरीखे भी सुधि खो बैठें

    तो आश्चर्य नहीं, और हर किसी का सारथी

    कृष्ण हो सकता नहीं। ये बंधन बहुत बलवान हैं

    प्रायः कहा जाता है कि मृत्यु सहज है

    यदि मेरी पत्नी दरिद्रा होकर किसी पर पुरुष के

    काम अथवा दान की पात्र ही बन जाए

    कौन मेरी कली-सदृश अति पवित्र कन्या के

    सिर पर छाया करेगा, कौन इस अस्पृष्ट पंखुड़ी को

    पाप-दुर्गंध से लदी पवन से सुरक्षित रखेगा?

    हाय मृत्यु कठिन है।

    तृतीय बंध हैं स्वहित,

    जब सब बहाने सोचकर थक जाते हैं, तो प्राण

    अपने-आप में संपूर्ण दिखाई देते हैं।

    दान देना बहुत सुगम पुण्य दिखाई देता है

    किंतु यदि व्यक्ति का जन्म किसी राजा के घर में हो

    अथवा धनवान साहूकार के यहाँ, जिसके जल-पोतों की पंक्ति

    सागर-नीर पर यों चले, जैसे किसी सुंदरी के कंठ में सुशोभित

    स्वर्ण माला जिसकी हीरों से जड़ी

    बुल्कियाँ वक्ष के हर स्पंदन के साथ लोट-पोट होती है

    हर उभरते भाव के साथ, हर उतरते हाव के साथ।

    राज्य हो, द्रव्य हो—पुण्य कर्मों के फलस्वरूप।

    कर्मयोगी के लिए दानवीर हो सकना संभव है।

    तो भी यह मानना होगा कि यह कर्मपद मध्यम कोटि का है

    शूरवीर से दानवीर की तुलना अनुपयुक्त ही है।

    दानवीरता शूरवीरता का सुखप्रिय पुत्र है।

    यह एक विधवा-पुत्र के समान है अथवा किसी धनिक के अश्व के समान

    जिसकी नीति अधिक खाना और कम काम देना है

    आज का युग और है, जब दान का अर्थ भी और है

    अब यह पापात्मा का सरल भ्रम मात्र है

    अब यह हत्यारे हाथों को धोने का साधन मात्र है।

    अब यह पापिष्टा का दुग्ध-धवल चीर मात्र है।

    हाय! कहाँ गया वह समय, यह भक्ति-युग—

    जब भक्ति के बिना सब कर्म-काण्ड अपूर्ण थे?

    जब भक्त के एक कोस चलने पर भगवान् चार कोस चलता था

    जब वह स्वयं भक्तों के पशु चराया करता था

    जब वह राजगीर बनकर किसी की छत छा देता था

    जब वह किसी को मुग़ल के बीच भी दिखाई देता था

    हाय हमारे देश के सहस्त्र वर्षों का दुर्भाग्य

    हाय, भक्ति अब बूढ़ी हो चुकी

    समय ने देव-बाला को वेश्या बना दिया

    क्या हुआ यदि कोई अधीर होकर पुकार उठा?

    यदि किसी भूखे क्षुधा पीड़ित ने भक्ति-माला उतार फेंकी?

    हम तो क्षुधा पिपासा में भी भक्ति करते रहे

    कोटि-कोटि जीव माथे रगड़ते मर गए।

    मुग़लो ने, अफ़ग़ानो ने, अँग्रेज़ों ने हमारी कद्र नहीं की।

    हम सहस्रों वर्षों से भक्ति-पथ पर चल रहे हैं

    प्रतीत होता है कि हम अभी घर से खेत तक ही पहुँचे हैं

    हमारे पाँव इस पथ से चिर-परिचित हैं

    जैसे कृषक कहते हैं—यह तो पाँव का पहचाना मार्ग है।

    किंतु इस मार्ग में शूरवीरता की विषमता नहीं है

    पराजित शूरवीर ही भक्त बनते रहे हैं

    रण-क्षेत्र में चारों ओर स्वजनों को देखकर

    जब अर्जुन विचलित हो गया था, धनुष फेंक दिया था

    यदि कृष्ण उसके पास होता तो वह भक्त था

    यदि पृथ्वीराज बंदी बनाकर ले जाया जाता

    ग़ौर-देश को, विजयी मुहम्मद द्वारा, नेत्रहीन करके

    यदि वह भाग जाता तो वह भी भक्त था।

    इस प्रकार के भक्त को जन्म देकर माता ने

    अपना यौवन खोया और रूप का नाश किया

    हे देशवासी, इस बात को फिर से विचारें-

    इस सिद्धांत को कुछ बदले, कुछ इसमें संशोधन करें

    हम भक्त हो, दानवीर हो और शूरवीर भी

    लोक-सेवा, लोक-भक्ति और लोक-युद्ध के शूर

    हृदय-धन के दानी, जनता जनार्दन के प्रेमी।

    स्रोत :
    • पुस्तक : भारतीय कविता 1954-55 (पृष्ठ 467)
    • रचनाकार : संत सिंह सेखों
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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