श्मशान-घाट : कुछ शब्दचित्र
shmshan ghat ha kuch shabdachitr
एक
सब तरफ़
एक जलती हुई चुप्पी पसरी हुई थी
फिर भी कुछ लोग हँस-हँस कर बात कर रहे थे...
शायद वही सबसे ज़्यादा डरे हुए लग रहे थे।
दो
फूल
गुलाल
बैंड-बाजे
राम-धुन
और
हँसी-ठट्ठे
आज रंग है री माँ!
तीन
जलाने से पहले
एक सौ आठ बार
नहलाया गया
मृतक को
मतलब यही
कि ज़रा-से भी
मैले आदमी को
नहीं दी जा सकती
बिल्कुल साफ़-सुथरी अग्नि...
चार
यह छोटा-सा बच्चा
कुछ बरसों बाद जानेगा
पिता को दी थी मुखाग्नि!
तब कौन-सा जल
बुझाएगा
अग्नि—
स्मृति की?
पाँच
श्मशान घाट में
साले सब के सब
फ़िलासफ़र हैं
यहाँ से निकलते ही
साले सब के सब
बनिए!
छह
रोते हुए को
केवल सांत्वना दी जा सकती है
साथ में रोया नहीं जा सकता...
वैसे...
साथ में रोया क्यों नहीं जा सकता?
सात
चूड़ी तो
एक विधवा ने
उस आँगन में फोड़ी थी...
ख़ून
मेरी आँखों से
क्यों रिस रहा है?
आठ
बहुत बाद में समझ आता है
कि बाज़ार में एक बेहद ज़रूरी दुकान वह भी है
जहाँ मरे हुए आदमी के सूट-बूट अटैची और बिस्तर मिलते हैं...
नौ
पंडित जी
पत्थर नहीं हुए हैं भाई!
जन्म से लेकर मृत्यु तक के मंत्रों ने
उनके भीतर
एक दुर्लभ तटस्थता पैदा कर दी है!
दस
ऐसा लगता है
जैसे
हर चिता की अग्नि से
कोई नवजात प्रकट हो रहा हो...!
- रचनाकार : मनमीत सोनी
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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