मैंने कौन-सी अफ़ीम खा ली है
mainne kaun si afim kha li hai
दिलीप पुरुषोत्तम चित्रे
dilip Purushottam chitre
मैंने कौन-सी अफ़ीम खा ली है
mainne kaun si afim kha li hai
dilip Purushottam chitre
दिलीप पुरुषोत्तम चित्रे
और अधिकदिलीप पुरुषोत्तम चित्रे
मैंने कौन-सी अफ़ीम खा ली है
रहमान कहता
अपनी इस नक़्श-ए-ख़याली को रोको
और कहीं से भी आ रही
रोशनी की किसी भी किरण को
स्तब्ध होकर देखते रहो
शहर में दंगे
मुहल्ले में सन्नाटा
या मुहल्ले में शोरशराबा
और शहर भर में चमचमाती रोशनी
बाज़ार-ए-हुस्न में बिकने आयी हुईं कुमारियाँ
यह दुनिया अब ढह रही है
रहमान कहता
ढहते-ढहते नयी हो रही है
नयी होकर फिर ढह रही है
मुद्दा अगर है तो
सिर्फ़ हमारे दिल में
मैं कहता
तुम्हारी हर बात सच मान लूँ
तो भी रहमान
अल्ला मियाँ ने सलमा को
किसलिए बनाया
यह मैं कैसे भूल जाऊँ?
रहमान कहता
सूई की नोक जितनी रोशनी में ही
सुख मिलता है
दुःख मिलता है
सूई की नोक जितने अँधेरे में ही
और यह इसलिए कि
सूई की नोक जितना ही है हमारा ही है हमारा जन्म
बाद में रहमान की दोनों आँखें चली गयीं
तब भी वह कहता
दृष्टि दिन की तरह आती है
दृष्टि दिन की तरह जाती है
उसकी आदत ना पड़े
अँधेरे की तरह
कयामत के दिन की तरह
मुझे सब साफ़ नज़र आता है
अल्ला ने सब पर हाथ फेर दिया हो जैसे
- पुस्तक : मैजिक मुहल्ला खंड दो (पृष्ठ 30)
- रचनाकार : दिलीप पुरुषोत्तम चित्रे
- प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
- संस्करण : 2019
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.