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प्राथमिक स्कूल

praathamik skuul

चंद्रकांत देवताले

चंद्रकांत देवताले

प्राथमिक स्कूल

चंद्रकांत देवताले

यह पूछने से कुछ नहीं होगा

कि मैं वहाँ कैसे पहुँचा?

बस पहुँचा।

उन सब मासूम बच्चों की मौजूदगी में

मेरा यह सवाल कितना बेहूदा था

इसके बाद ये सब कहाँ जाएँगे?

क्योंकि वे सब उस वक़्त

मँडराते हुए कौवों को इस तरह देख रहे थे

जैसे वे हेलीकॉप्टर हों

और बस चंद मिनटों में

उनके लिए बिस्कुट और ताज़ा किताबों

और खिलौने की बरसात होने वाली हो...

आँखों को कहाँ तक दौड़ा सकते हो

आँखें स्थिति शोधक यंत्र में तब्दील नहीं होंगी क्या

अनदेखे पड़े हैं अस्तबल

घोड़े ग़ायब मध्ययुग की घास चरने गए

चाबुक की जगह चाक

साइस नहीं खड़े हैं मास्टर...

पैंतीस परिवारों से लदी-झुकी इमारत के

तीन कमरों में लगता है यह सरकारी प्राथमिक स्कूल

पहली पाली के वक़्त

गंदली झोली में

चिथड़ा पुस्तक लटकाए

वे जाते निन्ने पेट

तब पत्थर के कोयले से

भरी सिगड़ियाँ

सुलगने की तैयारी में

उगलतीं बेसाख़्ता कड़ुआ धुआँ...

चुड़ैल के क़िस्से से पराभूत

हमेशा उसके उलटे मुड़े पंजों से चकित

वे सब आँखें मसलते

मायने घोंकते रहते

स्वतंत्रता याने आज़ादी

स्वतंत्रता

याने आज़ादी

कुछ लड़कियाँ मज़े में

भीतर ही भीतर तुक मिलातीं, बुदबुदातीं

हरामज़ादी, हरामज़ादी...

दूसरी पाली में

ये जब पानी के लिए तरसते रहते

पूरी इमारत

कपड़ों को पछींटने की

आवाज़ों से भर जाती

टूटी हुई घड़ी में

करकती रेत की तरह

वक़्त झरता...

अध्यापिका के भीतर की घड़ी में

यह अपने घर पड़े बच्चे को

दूध पिलाने का समय होता

पर वह बाहर की घड़ी के मुताबिक़

पूरी कक्षा को सात का पहाड़ा

दहाड़ने का आदेश दे

सारी आवाज़ों से बेख़बर

खिड़की के बाहर

सड़क के ग़र्द-ग़ुबार में

अपना कोई चेहरा ढूँढ़ती

शाम मिल जाने पर

जब मैंने बताया उसे सब कुछ

बहुत दुख के साथ

तो उसके चेहरे पर

कोई उकताहट नहीं थी

एक आत्मघाती संतोष की आभा से दीप्त

वह बड़बड़ाहट के अंदाज़ में

सत्ता-पक्ष के किसी भी नुमाइंदे की तरह

राष्ट्रोन्नति का सबूत देते

गिनाता रहा

सन चौहत्तर में खुले

नए स्कूलों की संख्या...

मरोड़ खाती मितली के बीच

मैं सोचने लगा

कैसे टेंटुआ मसका जाए

आँकड़ों के इस दुभाषिए का

जो सरेआम

ग़लत तर्ज़ुमा कर

कीचड़ को कमल

और अँधेरे में

भिनभिनाते मच्छरों की आवाज़ को

धूप में बजता सितार

बता रहा है।

स्रोत :
  • पुस्तक : जहाँ थोड़ा-सा सूर्योदय होगा (पृष्ठ 31)
  • रचनाकार : चंद्रकांत देवताले
  • प्रकाशन : संवाद प्रकाशन
  • संस्करण : 2008

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