बच्चे धर्मयुद्ध लड़ रहे हैं
bachche dharmyuddh laD rahe hain
रोचक तथ्य
इस कविता के लिए कवि को भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार प्राप्त हुआ।
अमेरिकी युद्धों में मारे गए, यतीम और जिहादी बना दिए गए असंख्य बच्चों के नाम
सच के छूने से पहले
झूठ ने निगल लिया उन्हें
नन्हें हाथ
जिन्हें खिलौनों से उलझना था
खेतों में बम के टुकड़े चुन रहे हैं
वे हँसते हैं
और एक सुलगता हुआ
बम फूट जाता है
कितनी सहज है मृत्यु यहाँ
एक खिलौने की चाभी
टूटने से भी अधिक सहज
और जीवन, वह घूम रहा है
एक पहाड़ से रेतीले विस्तार की तरफ़
धूल उड़ रही है
वे टेंट से बाहर निकलते हैं
युद्ध का अठ्ठासिवाँ दिन
और युद्ध की रफ़्तार
इतनी धीमी इतनी सुस्त
कि एक युग बीत गया
अब थोड़े से बच्चे
बचे रह गए हैं
फिर भी युद्ध लड़ा जाएगा
यह धर्मयुद्ध है
बच्चे धर्म की तरफ़ हैं
और वे युद्ध की तरफ़
सब एक दूसरे को मार देंगे
धर्म के ख़िलाफ़ खड़ा होगा युद्ध
और सिर्फ़ युद्ध जीतेगा
लेकिन तब तक
सिर्फ़ रात है यहाँ
कभी-कभी चमक उठता है आकाश
कभी-कभी रौशनी की एक फुहार
उनके बग़ल से गुज़र जाती है
लेकिन रात और
पृथ्वी की सबसे भीषण रात
बारूद, बर्फ़ और कीचड़ से लिथड़ी रात
और मृत्यु की असंख्य चीख़ों से भरी रात
पीप, ख़ून और माँस के लोथड़ों वाली रात
अब आकार लेती है
वे दर्द और अंधकार से लौटते हैं
भूख की तरफ़
भूख और सिर्फ़ भूख
बच्चे रोटी के टुकड़ों को नोच रहे हैं
और वे इंसानी जिस्मों को
कटी टाँगों वाली भूख
ख़ून और पीप से लिथड़ी भूख
एक मरियल सुबह का दरवाज़ा खुलता है
न कोई नींद में था
न कोई जागने की कोशिश कर रहा है
टेंट के दरवाज़े
युद्ध की पताकाओं की तरह लहराते हैं
हवा में बच्चे दौड़ रहे हैं
खेतों की तरफ़
रात की बमबारी ने
कुछ नए बीज बोए हैं
- रचनाकार : अच्युतानंद मिश्र
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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