सच तो यह है कि छिपकलियाँ
कला के बारे में हमसे ज़्यादा जानती हैं
वे उच्च कोटि की कला प्रेमी हैं
आश्चर्य नहीं कि उनका निवास अक्सर
चित्रों की दीवार से सटी पीठ पर होता है
उन्हें सच्चे कलाकारों की तरह इस बात से फ़र्क़ नहीं पड़ता
कि दीवार और तस्वीर के बीच की जगह कितनी असुविधाजनक है
कि वहाँ रोशनी कम है
यूँ प्रकाश के बारे उन्हें कोई भ्रम भी नहीं
अलबत्ता यह ज़रूर है कि
वहाँ से अनजान और लापरवाह कीट-पतंगों को
छोटी चमकदार आँखों से ताका जा सकता है
और लपक कर हज़म किया सकता है
परवाने जो शमा के इर्द-गिर्द सूफ़ियों-सा चक्कर काटते हैं
उनकी मासूमियत पर दिल खोलकर हँसा जा सकता है
और मौक़ा मिलते ही उनके सुंदर, मुलायम परों वाले शरीरों को
लपलपाती जीभ से दुलारा जा सकता है
यही नहीं क़ीमती पेंटिंग्स पर इत्मिनान से रेंगा जा सकता है
उनकी बनावट को अपने पेट और टूटी दुम से महसूस करते हुए
एक कलाकृति से दूसरी कलाकृति की ओर
ज़ोरदार दौड़ लगाई जा सकती है
उनके बीच की दूरी को इस तरह से नापा जा सकता है
और जो पेंटिंग पसंद आ जाए
उसके आगे पीछे घूमते हुए उस पर
एक सटीक पर टेढ़ी समीक्षा दी जा सकती है
और जो नापसंद हो
उसे जैसी है वैसे ही छोड़ा जा सकता है
बिना टिप्पणी दिए
जैसा समझदार आलोचक अक्सर किया करते हैं।
- रचनाकार : विजया सिंह
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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